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आज दिनांक २३ मई २०१६ के दैनिक जागरण में सम्पादकीय पृष्ठ पर श्री विजय गोयल जी का लेख पढ़ने को मिला उन्होंने सांसदों को एकदम विचारा दिखाने का प्रयास किया है अपने लेख ” सवाल सांसदों के वेतन का ” शीर्षक से उनका कहना है मात्र १०% नेता ही देश में भ्रष्ट हैं बाकि ईमानदार हैं. लेकिन मेरी राय में उन्होंने उल्टा लिखा है जैसा जनता को भी अनुभव है ९० % भ्रष्ट हैं और १० % के ही ईमानदार होने की सम्भावना है .ऐसा मैं इसलिए लिख रहा हूँ क्यूंकि नेताओं के चयन का तरीका, नेताओंं को चुनाव में टिकट देने का तरीका किस तरह का है यह देश की अधिकतर जनता जानती है अख़बारों में खबर छपती है फलां पार्टी में सांसद का टिकट इतने करोड़ का बिकता है मुझे उम्मीद है गोयल जी मेरी इस बात से सहमत होंगे जब अपराधियों को, सजायाफ्ता को चुनाव में टिकट दिया जा रहा है नेता जेल में रहकर चुनाव जीत रहें हैं फिर किस ईमानदारी की बात गोयल जी कर रहे हैं अव्वल तो नेताओं को वेतन के नाम पर मात्र एक रुपया ही लेना चाहिए क्यूंकि भारतवर्ष में शुरू से नेता एक समाजसेवी कहलाया है यह तो भारतीय लोकतंत्र की विडंबना ही है की आज नेता समाजसेवक न होकर खुद के सेवक बन गए हैं चुनाव जीतने के बाद कोई सांसद कोई विधायक अपने चुनाव क्षेत्र में शायद ही जाता है तभी तो क्षेत्र के लोग नेताओं के बंगले का चक्कर लगाते हैं और बमुश्किल उनकी मुलाकात अपने नेता जी से हो पाती है गोयल जी जो हवाला दे रहें हैं की नेताओं का खुद का बांग्ला क्षेत्र की जनता को रहने को देना पड़ता है जबकि अनुभव यही रहा है की लोग बंगले का चक्कर कई दिनों से काट रहें हैं और नेता जी की सूरत भी उनको नजर नहीं आती अक्सर नेताओं के पाने बंगले होते हैं फिर भी वे सरकारी बंगले को पाने के लिए विभागों पर दबाव बनाते रहते हैं और जब कभी भी लोकसभा या राजयसभा में बैठक होती है ये नेता आपसी विवाद और राजनितिक घृणा की भावना से से हो हल्ला मचाकर सांसद की कार्रवाई चलने ही नहीं देते क्या जिस दिन सांसद में कोई काम नहीं होता उस दिन का वेतन भत्ता ये नहीं लेते जब सांसद अपने वेतन के लिए रो रहे हैं फिर इनको जैसे और विभागीय अधिकारी या कर्मचारी हैं उसी तरह ट्रीट किया जाना चाहिए काम नहीं तो दाम नहीं जैसे उनको टास्क मिलता है और एक निश्चित तारीख मिलती है वैसे ही इनका भी कार्यकाल देखा जाना चाहहए जवाबदेही नगण्य है और मान अनन्त है कैसे भारत जैसा गरीब देश इन नेताओं को मुफ्त में पाल सकता है देखने में यही आया है की जब जब चुनाव होता है ये नेता अपनी संपत्ति का ब्यौरा देते हैं और आंकड़े हमेशा दोगुने तिगने दिखाई देते हैं क्या गोयल जी यह बताएँगे की जब नेता कोई ब्यापार नहीं करता जनता का काम करता है और उसके एवज में कम वेतन लेकर गुजर करता है तब क्यों कर उनकी संपत्ति साल दर साल दोगनी तिगनी कैसे हो जाती है अगर ५ करोड़ की सांसद निधि में से आधे का भी काम ये नेता जन कल्याण के लिए करते तो अब तक देश के कई हिस्सों से गरीबी दूर हो जाती और गाओं में रहने वाले लोगों को भी बुनियादी सुविधाओं का टोटा नहीं होता अब जब नेता अपने क्षेत्र में जाते ही नहीं हैं तो फिर क्षेत्र में काम क्या हुवा? इनको क्या मालूम हर गाओं में जिलों में नेताओं के दलाल बैठे हैं वे ही गुर बताते हैं पैसों की बंदरबांट कैसे करनी है सारा काम कागजों पर हो जाता है हाँ कुछ काम जरूर जमीन पर भी हुवा है वह है प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गोयल जी ने अमेरिका की बात लिखी है वहां के सांसदों का वेतन एक करोड़ है क्या क़भी उन्होंने अमेरिका का कोई सांसद घोटाला किया है यह भी सुना है . ब्रिटेन में प्रति एक लाख पर एक सांसद होता है और यहाँ १५-१७ लाख पर एक सांसद होता है पर वहां का सांसद अपने क्षेत्र की जनता के प्रति जितना जवाबदेह होता है या जितना काम उनका करता है क्या उसका १०% प्रतिशत भी काम यहाँ का नेता करता है अपने देश में तो २० लाख पर एक सांसद हो तब भी काम चल जायेगा क्यूंकि जब कुछ काम करना ही नहीं है फिर सांसदों की संख्या बढाकर देश की जनता पर और अधिक आर्थिक बोझ डालने का क्या औचित्य है अतः पहले नेता अपने कार्यकाल में सादगी ,ईमानदारी और एक सेवक के रूप में जनता के समक्ष अपने को प्रस्तुत करें तब किसी वेतन बढ़ोतरी की बात करें जब गोयल जी खुद से लिख रहे हैं की नेताओं की छवि लुटेरे की बनी है फिर उस छवि को पहले सुधरने की जरुरत है न की जनता के पैसों पर विलासिता की जिंदगी जीना और अपने को सांसद कहना और उस नाम पर अपना वेतन बढ़ाने की बात करना कहीं से न्यायसंगत नहीं जनता ट्रस्ट नेता मस्त यही दिखलाई दे रहा है आज की तारीख में .
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