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१९ नवम्बर को सरकार ने सातवें वेतन अयोग को पहली जनवरी २०१६ से लागु किये जाने की घोषणा की. इसी तरह मोदीजी ने लोकसभा चुनाव के पहले चुनाव प्रचार के दौरान हरयाणा प्रान्त के रेवाड़ी में मोदी जी ने पूर्व सैनिकों को सम्बोधित करते हुए एक घोषणा की थी अगर उनकी पार्टी बी जे पी लोकसभा चुनाव जीतकर आई तो जो सैनिकों की ४० साल पुरानी मांग ओ आर ओ पी (OROP ) जरूर देगी . २६ मई २०१४ को मोदीजी ने प्रधानमंत्री के रूप में प्रचंड बहुमत के साथ जीतकर शपथ ली अपने को प्रधानमंत्री नहीं, प्रधान सेवक कहा. .मोदी जी के इस कथन से पूरा देश विश्वास कर बैठा अब जरूर देश के गरीब किसानों के दिन बहुरेंगे उनके जीवन में खुशहाली आएगी भूतपूर्व सैनिक भी खुश हो गए उनकी भी अपनी वर्षों पुरानी मांग पूरी की जाएगी और लोगों के जीवन में बदलाव आएगा इसी तरह मोदी जी विदेशों में भी अपनी जय -जय कार सुन कर खुश होते रहे आज भी मोदी विदेश दौरे पर ही हैं (सिंगापुर ) क्या ? मोदी जी सैनिकों की मांग पूरी किये? अभी तक घोषणाएं ही हो रही हैं पैसा किसी की बैंक खाते में नहीं आया कहा था काला धन वापस लाकर देश के सभी गरीब लोगों के बैंक खाते में १५ लाख जमा किया जायेगा १५ करोड़ लोगों के खाते भी खोले गए एक धेला भी किसी के बैंक खाते में नहीं जमा हुवा और अब तो मोदी जी के इन वायदों को चुनावी जुमला का नाम दिया जा रहा है देश का प्रधानमंत्री ऐसा कह सकता है और इन सब के बावजूद जनता की गाढ़ी कमाई को अपने विदेश यात्राओं पर खर्च कर सकता है इन सब बातों पर पत्रकारों का ध्यान क्यों नहीं जाता .
आज के अख़बार दैनिक जागरण में ” राष्ट्रिय आय नीति की जरुरत ” जाने माने पत्रकार सुधांशु रंजन जी का आलेख पढ़ने का अवसर मिला जिसमें उन्होंने बात तो राष्ट्रिय आय नीति कि कही लेकिन उनके निशाने पर केवल केंद्रीय कर्मचारी एवं पेंशन प्राप्त करने वाले कुछ दो करोड़ लोग रहे . मुझे पढ़कर बड़ा ही दुःख हुवा की उनकी नजर में इस देश में सबसे ज्यादा वेतन पानेवाले केंद्रीय कर्मचारी एवं पेंशन पानेवाले सीनियर सिटीजन ही राष्ट्र की आय नीति के संतुलन को बिगाड़ रहे हैं . मैं उनसे जानना चाहूंगा इस आय नीति की चर्चा में उन्होंने मंत्रियों ,नेताओं की बात क्यों नहीं कही, शायद उनको मालूम नहीं की एक सांसद एक विधायक एक मंत्री की वार्षिक आय कितनी है ? केंद्रीय कर्मचारी तो अपनी सेवाएं देश को देते हैं और वे जवाबदेह भी हैं अपने अधिकारीयों के प्रति फिर उनको वेतन भत्ता मिलता है सेवा निविर्त होने के बाद उनको पेंशन मिलता है और इस देश के नेता क्या काम करते हैं ? सांसद चुने के बाद संसद में हो हल्ला करते हैं पार्लियामेंट की कैंटीन में रियायती दर पर भोजन नाश्ता खाते हैं मुफ्त में विदेश यात्रा करते हैं और देश का काम धेले का नहीं करते इतना ही नहीं अपने ५ साल के कार्यकाल के बाद पेंशन के हक़दार भी हो जाते हैं क्या उनके इस कृत्य से राष्ट्रिय आय का अनुपात नहीं बिगड़ता इसके लिए कोई नीति नहीं चाहिए सांसद निधि के रूप में ५ करोड़ मिलता है क्या उसका काम जमीं पर होता है पत्रकारों को भी पता है इसका बन्दर बाँट होता है सबसे पहले इस विषय पर बहस होनी चाहिए सरकारी कर्मचारियों के लिए काम नहीं तो वेतन नहीं नियम लागू है मंत्रियों के लिए काम नहीं पर वेतन भत्ता एवं सारी सुविधाएँ जरूर दी जाती है आज राजनीती एक करियर की तरह उभरा है जिसके लिए कोई शैक्षणिक योग्यता नहीं और वैसे चुने लोग प्रशासनिक अधिकारी पर हुकम चलाते हैं क्या सुधांशु रंजन को यह ज्ञात नहीं .मिडिया में कार्यरत्त लोग कम वेतन भत्ता पाते हैं क्या ? किसी नेता की छवि बनाने और बिगाड़ने में ये मिडिया के लोग माहिर होते हैं और ऐसा वे पैसा लेकर करते हैं निस्संदेह इस देश में गरीब अति गरीब और अमीर अति अमीर होते जा रहें हैं अगर किसी नीति की जरुरत है तो आज संपत्ति की अधिकतम सीमा निर्धारित करने के लिए कोई कानून बनाने की है कोई राष्ट्रिय नीति बने जिससे गरीबी -अमीरी की बढ़ती खायी कमतर हो इस गंभीर विषय पर चर्चा हो अख़बारों में टेलीविजन चैनलों पर भी इसकी चर्चा कि जाये ना की भारत जैसे सहिष्णु देश में असहिष्णुता की चर्चा हो जो की आज कोई विषय ही नहीं है अख़बारों में और मीडिया में सार्थक चर्चा हो नेताओं की बयानबाजी आरोप प्रत्यारोप टी आर पी तो शायद बढ़ा सकते हैं पर इससे जनता और देश का कोई भला नहीं होनेवाला . ant में मैं सुधांशु रंजन जी के लेख में byakt किये गए विचारों से सहमत नहीं.
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