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दान अनुदान के बजाय बेरोजगार लोगों को काम मिलना चाहिए

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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देश को आज़ाद हुए ६८ साल बीत गए अभी दो रोज पहले देश ने ६९वा स्वतंत्रता दिवस मनाया देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की और विगत १५ महीने में कितना कल्याणकारी काम वे किये उनको गिनाये . जरूर काम हुवा है लाभ भी कुछ लोगों को हुवा है क्यूंकि उन्होंने आंकड़े गिनवाए . लेकिन आंकड़े कितने सही हैं यह तो उनको मालूम है जिनको लाभ पहुँचाने का दावा मोदी जी कर रहें हैं . मोदी जी ने एक नयी शुरुआत भी की है . “मन की बात ” कुछ महीनों के अंतराल पर मोदी जी देश की जनता को रेडिओ पर सम्बोधित करते हैं और अपने मन की बात जनता तक पहुचाते हैं .एक अच्छी शुरुआत है देश की जनता को भी लगता है की वर्तमान प्रधानमंत्री आम लोगों की परवाह करते हैं और उनसे अपने मन की बात करते हैं . लेकिन , मेरी राय में मोदी जी को कभी लोगों की (खासकर किसी गरीब की) मन की बात भी सुननी चाहिए. संचार माध्यम आज बहुत तीव्र गति से काम कर रहा है जिस तरह मोदी जी ने लोकसभा चुनाव के दौरान चाय पर चर्चा की थी ठीक उसी तरह किसी अति गरीब गाँव में टेलीविजन चैनल के संवाद दाताओं को भेजकर कभी गरीबों से संवाद करें उससे पूछे उनकी सरकार बनने के बाद क्या उनको सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है उनको सार्वजानिक वितरण प्रणाली के माध्यम से मिलने वाला अनाज मिल रहा है उनके खेतों को सिंचाई का पानी मिल रहा है उनको साल में १०० रोज काम मिल रहा है उनको वृद्धा पेंशन मिल रहा है उनके बच्चे स्कुल जा रहें हैं उनको अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रयाप्त धन मिल रहा है आदि – आदि . मेरी समझ से ना जाने कितने ही सवाल उनके मन में है, जिनका जवाब आज तक किसी नेता ,किसी मंत्री ने उनको नहीं दिया .गरीब को अनुदान की जरुरत नहीं है अनुदान की जरुरत तभी है जब कोई प्रकिृतिक आपदा आयी हो . लेकिन गरीब लोग तो रोज मर्रा की आपदा से परेशान हैं क्यूंकि कितनों को खाने को भर पेट अनाज नहीं है, जवान बेटे को काम नहीं है खेतिहर मजदूर रोजी रोटी की तलाश में शहरों में पलायन करते जा रहें हैं .हम छोटे थे तो किताबों में पढ़ते थे हमारे देश की ८० % आबादीहे गावं में रहती है और यह आबादी खेती पर निर्भर है आज खेतिहर का प्रतिशत भी ६० से भी नीचे आ गया है .जैसे जैसे परिवार बढ़ते गए, खेत बटते गए और इतना कम खेत हो गया की किसान ,किसान ना रहकर , खेतिहर मजदूर बन गया और ज़माने से खेती घाटे का काम हो गया खेती में लगायी गयी पूंजी भी वापस मिलने में समस्या होने लगी लोग हताश निराश होकर खेती छोड़ शहर में रोजगार ढूंढने लगे वहां भी भीड़ बढ़ती गयी . सुविधाओं संसाधनों की कमी के चलते 7×7 फुट के कमरे में ४-६ लोग रहने को मजबूर हो गए और उनका जीवन और नारकीय हो गया . अतः अब जरुरत है की गावं से पलायन कैसे रुके तथा गावं में रहनेवालों को उनके गावं में ही काम करने का ,रोजी कमाने का साधन और अवसर मिले गावं में न्यूनतम बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ. चुनाव में चुने गए सांसदों को लम से काम वर्ष में ३ से ६ माह अपने क्षेत्र में रहने की बाध्यता हो.
आज क्या हाल है नेता केवल चुनाव के दौरान ही गाँव में नजर आते हैं औए एक बार चुन लिए गए तो चुने जाने के बाद अगले चुनाव पर ही उनके दर्शन होते हैं ऐसा क्यों है ? ऐसा होने से उन नेताओं को क्षेत्र के लोगों का दुःख दर्द मालूम ही नहीं होता क्षेत्रों की समस्या केवल लोकसभा और राज्य सभा में चर्चा हो जाने मात्र से गरीबों का भला नहीं होने वाला आखिर गरीब गरीब है क्यों? इस पर विचार करने की जरुरत है और जब तक देश में संपत्ति की अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की जाएगी तब तक गरीब अति गरीब होता जायेगा और अमीर अति अमीर ऐसे में देश से कभी गरीबी नहीं मिटेगी.
आज पूरे विश्व में संसार के पूरे संसाधनों को २ से ४ % लोग उपभोग कर जा रहें हैं , उनसे बचा जूठन ही बाकी ९८ % लोगों को नसीब है ऐसा क्यों है ? इस पर भी चर्चा होनी चाहिए मोदी जी कह रहे थे उनकी सरकार पर एक नए पैसे का भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा . क्या यह सच्चाई है क्या देश में केवल दिल्ली में ही सरकार है या देश के अन्य राज्यों में भी सरकार है वहां पहले भी पैसों की बन्दर बाँट होती थी आज भी होती है क्या यह उपकार है या यह भी भ्र्ष्टाचार है .कागजों पर मनरेगा के पैसे बांटे गए २० रुपया देकर १२० रूपये पर अंगूठा लगवाये गए .यही हुवा है कल्याणकारी योजनाओं का हश्र अतः बजाय अनुदान और दान के लोगों को काम दिया जाए परिश्रम करके कमाया गया धन ही गरीबों की दशा सुधार पायेगा और वैसा धन ही सही कामों में खर्च होगा मुफ्त में मिला रुपया /पैसा शराब की भेंट चढ़ जाता है . आज गावं गावं में कच्चे शराब की भट्टियां चल रही हैं गावं के युवा सुबह – सबेरे ही शराब पीकर घूमते नजर आते हैं खासकर बिहार में नितीश के राज में शराब के ठेके खूब खुले . हराम में पैसा मिलेगा तो उसका सदुपयोग हो ही नहीं सकता वह गलत कामों में ही खर्चा जाएगा और दान अनुदान मिलने से कमाऊ लोग निकम्मे हो जायेंगे देश के लिए बोझ बन जायेंगे और अपनी गलत आदतों को पूरा करने के लिए चोरी चकारी , लूट- पाट जैसे गलत काम करेंगे जिस कारन वे अपराधी भी बन जायेंगे अतः रोजगार का केवल वायदा ना किया जाए बल्कि रोजगार दिया जाए आज कोई भी नौकरी के लिए विज्ञापन निकलता है तो १००/२०० पदों पर लाखों की संख्या में आवेदन आते हैं और चयन प्रक्रिया इतनी भ्रष्ट और जटिल कर दी गयी है की रोजगार का अवसर समाप्त हो जाता है लेकिन रोजगार नहीं मिल पाता .अपने देश में खेती के काम में सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर हैं अगर खेती को लाभप्रद बनाया जाए तो युवा गावं से पलायन भी नहीं करेंगे और खेती करना पसंद करेंगे क्यूंकि आज भी शहरों की अपेक्षा गावं का वातावरण स्वास्थ्य के हिसाब से लाभकारी है गावं की हवा प्रदूषित भी नहीं है .अतः आज शोध खेती पर होनी चाहिए और कैसे खेती को लाभकारी बनाया जाए इस पर सरकार को फोकस करने की जरुरत है . गावं में ही विभिन्न किसम के लाभकारी रोजगार के अवसर पैदा किये जाएँ की गावं के युवा लोगों को अपना गावं छोड़ना ही नहीं चाहें . सरकार को सबसे ज्यादा तवज्जो अब खेती पर ही देना चाहिए और साथ ही किसानों द्वारा उपजाया गया अनाज कैसे सुरक्षित रहे सड़े- गले ना इसके लिए ज्यादा काम होना चाहिए अनाज भण्डारण की सुविधा गावं के नजदीक होना चाहिए . अगर संभव हो तो अनाज ज्यादा जमा रखने के बजाये जिन क्षेत्रों में अनाज कम पैदा होता है उन क्षेत्रों के लोगों को खेतों से सीधे, जिन क्षेत्र के लोगों को अनाज की जरुरत उसके तक कैसे जल्दी पहुचाया जाए इस पर काम होना चाहिए और इसकी प्रक्रिया भी आसान और सुगम बनाया जाना चाहिए .क्यूंकि हर साल किसानों का अनाज मंडियों तक पहुचने के पहले असमय बारिश या ओला पड़ने से बर्बाद हो जाता है और यह बर्बादी पूरे देश में लाखों करोड़ों टन में होती है . अगर देश में अनाज सरपलस है तो क्यों ना उसका निर्यात किया जाए ? वर्षों से हो रही बर्बादी तो रुकेगी . भारत एक ऐसा ही देश है जहाँ एक तरफ तो लाखों टन अनाज सड़ जाता है और दुसरी तरफ लोग भूख से मर भी जाते हैं आशा है वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी इस गंभीर विषय पर जरूर कोई त्वरित कार्रवाई करेंगें जिससे आने वाला फसल फिर से बर्बाद ना हो और किसानों का खून पसीना से उपजाया गया अन्न बर्बाद ना हो उनको उनके फसल की उचित कीमत मिले जिससे उनका जीवन खुशहाल हो और कोई किसान कर्ज के बोझ से आत्महत्या ना करे और खासकर नेता लोग किसानों की आत्महत्या पर गलत बयानी भी ना करें जिससे उनका दुःख कम होने के बजाये दूना हो जाए . देश कभी ना भूले किसान ही अन्नदाता है उसको अपमान नहीं सम्मान चाहिए दान या अनुदान नहीं .

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