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शिक्षा की जमीनी सच्चाई

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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यूँ तो अपने देश में साक्षरता अभियान विगत कई वर्षों से चलाया जा रहा है . देश के गरीब परिवारों के बच्चों को भी शिक्षा मिले इसपर केंद्र , एवं राज्य सरकार भी अच्छा खासा धन खर्च कर रही है . दोपहर के भोजन की भी ब्यवस्था स्कूलों में की गयी ताकि गरीब परिवारों के बच्चे भी पेट भरने के लालच में ही सही स्कुल जरूर आएं और साक्षर जरूर बने ,अनपढ़ बने ना रहें पर दुखद बात यह है की इन सुविधाओं के होने के बावजूद भी स्कूलों में अपेक्षित उपस्थिति नहीं हो पा रही है और कुछ बच्चे तो मात्र दोपहर का भोजन करने ही स्कुल परिसर में आते हैं . खैर ! सरकार अपना काम कर रही है कुछ तो माता -पिता एवं अभिभावकों को सोचना चाहिए . और उन्हें अपने बच्चों को स्कुल जाने के लिए प्रेरित करना चाहिए समझाना चाहिए की स्कुल जाने में ही उनकी भलाई है शिक्षित होंगे तभी उनके जीवन में भविष्य में खुशहाली आएगी. .
इसमें संदेह नहीं की अभी भी देश में विद्यालयों की संख्या विद्यार्थियों के अनुपात में नहीं है जो विद्यालय हैं भी वे कई तो इतने पुराने हैं की उनकी हालत जर्जर हो गयी है बरसात के दिनों वर्षा का पानी छत से अंदर गिरता है अतः बरसात के दिनों में गावं के स्कुल ज्यादातर बंद ही रहते हैं जिसको देखनेवाला कोई नहीं. कहने को जिला शिक्षा पदाधिकारी हर जिले में बैठा है पर वह हेडक्वाटर से बहार कम ही निकलता है. अगर अधिकारी औचक निरिक्षण करते तो दोषी शिक्षकों पर कार्रवाई की जा सकती थी . खासकर ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों में जितने भी शिक्षक बहाल हैं वे ज्यादातर
नजदीक के शहरों में ही निवास करते हैं और अपने बच्चों को कभी सरकारी स्कुल में दाखिला नहीं दिलाते क्यूंकि उनको यह सच्चई मालूम है की सरकारी वह भी गावं का स्कुल ,उसमें शिक्षा का क्या स्तर होगा जहाँ शिक्षक ही नदारद है, पढ़ायेगा कौन ? . यहाँ तक की कई शिक्षक विद्यालय केवल महीने में एक दिन जाते हैं ,वह भी अपना वेतन लेने .आजकल वेतन भी सीधे बैंक खातों में ही आने लगा है अतः अब तो वैसे शिक्षक प्राचार्य के साथ सेटिंग कर लेते हैं और अपने वेतन का कुछ हिस्सा प्राचार्य महोदय को अर्पित कर देते हैं और मजे से शहर में बैठकर अपने बच्चों को प्राइवेट स्कुल में पढ़ाते हैं और खाली समय में ट्यूशन पढ़ाकर और कमाई करते हैं जिससे वे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिए महानगरों में भेज सकें और ऐसा करें भी क्यों ना ,आजकल प्रतियोगिता का जमाना है और प्रतियोगिता में सफलता तभी मिलेगी जब बच्चा कोचिंग सेंटर में पढ़े. आखिर एक शिक्षक होने के नाते उसको कम से कम अपने बच्चे का भविष्य तो बनाना ही है यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहूंगा की ऐसी हालत बिहार के स्कूलों की है दूसरे राज्यों में ऐसा ही होता हो यह जानने का विषय है .
यह तो हुयी शिक्षकों की बात , अब शिक्षक बहाली की प्रक्रिया पर ध्यान दिया जाये विगत वर्षों में ठेके पर शिक्षक बहाल किये गए थे उनमें शायद ही कोई बच्चों को पढ़ाने योग्य शिक्षक थे वे तो केवल इसी प्रयास में लगे रहे थे की कैसे भी उनको स्थायी शिक्षक बना दिया जाए ताकि वे आजीवन बिना कुछ काम किये वेतन भत्ता पाते रहें , वो तो भला हो न्यायलय का जिनके दखल से कितने ही शिक्षक त्यागपत्र देने को बाध्य हुए . अतः मैं शिक्षक चयन प्रक्रिया में अपना एक सुझाव देना चाहूंगा शिक्षक की बहाली में मात्र डिग्री को प्राथमिकता देना बंद होना चाहिए , मुझे याद है एक बार इस विषय पर चर्चा भी हुयी थी की रोजगार को डिग्री से डीलिंक करना चाहिए कोई भी उम्मीदवार जिस पद के लिए आवेदन करता है वह उस पद पर काम करने लायक है या नहीं इस आधार पर चुनाव किया जाना चाहिए यानि थ्योरी के बजाय प्रैक्टिकल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए , अब शिक्षक की बहाली को ही ले लिया जाए कोई भी उम्मीदवार अगर शिक्षक बहाल होने के लिए आवेदन कर रहा है तो उसको एक क्लासरूम में बच्चों के सामने पढ़ाने का कार्य दिया जाये और उसका वीडियोग्राफी किया जाये ताकि चयन का रेकार्ड रहे .चयन कर्ता खुद सुने वह शिक्षक बच्चों को कैसे पढ़ा रहा है ,उसको विषय का कितना ज्ञान है वह पढ़ाने में कितना सक्षम है और यही उसकी योग्यता होनी चाहिए और केवल पढ़ाने की योग्यता के आधार पर ही उसे चयनित किया जाना चाहिए . चुकी शिक्षा ही एक ऐसा क्षेत्र है जो हमारे देश की भावी पीढ़ी का भविष्य सँवारेगी अगर शिक्षक ही पढ़ाने के काबिल ना हो तो वह कैसे पढ़ायेगा क्या पढ़ायेगा
क्यूंकि अगर डिगी आधारित शिक्षक बहाली होगी तो आज सबको पता है डिग्रियां कितनी फर्जी हैं जो सरेआम बिकती हैं और लोग शिक्षक क्या मंत्री बन जा रहें हैं फर्जी डिग्री हासिल करके इसका ताजा उदाहरण दिल्ली के कानून मंत्री तोमर जी हैं . बिहार राज्य तो फर्जी डिग्री का गढ़ है और इसके कार्यालय आज पूरे देश में फैले हुए हैं अतः सरकार को चाहिए शिक्षक बहाली की प्रक्रिया को दोषरहित बनाया जाए शिक्षा अधिकारी विद्यालयों का औचक निरिक्षण करें ताकि स्कुल जाने वाले बच्चे पढ़ें और आगे बढ़ें अधिकारीयों की जिम्मेवारी ज्यादा बनती है रामायण में कहा गया है “बिन भय होहिं ना प्रीति ” अगर नौकरी जाने का भय होगा तो जरूर शिक्षक भी स्कूलों में जाएंगे और बच्चे पढेंगें आशा है शिक्षा की जमीनी सच्चाई को समझते हुए सम्बंधित पदाधिकारी एवं चयन प्रक्रिया में जुड़े लोग तथा राज्य एवं केंद्र सरकार इस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान देगी तभी शिक्षा में गुणवत्ता आएगी गरीब बच्चे भी पढ़ेंगे आखिर कोई तो जिम्मेवार होना ही चाहिए . आज जवाबदेही ही किसी बात की किसी को नहीं है तभी हर क्षेत्र में ऐसा हाल है और हमारे बिहार का अपेक्षित विकास भी इसी कारन से नहीं हो पा रहा है.
अशोक कुमार दुबे
पटना

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