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भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ कांग्रेस पूरे देश में आंदोलन करने चली है

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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जबसे भारतीय जनता पार्टी की सरकार पिछली कांग्रेस की सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन करके ,बिल को पास करवाने की जुगत में लगी है तभी से कांग्रेस पार्टी के हाथ बिना मांगे एक मुद्दा मिल गया है , कांग्रेस जो अब बिपक्ष में भी बैठने के काबिल भी नहीं रही है तथा आज कांग्रेस पार्टी को देश की १४ और पार्टियों का समर्थन मिल गया है वे सभी इस बिल के खिलाफ किसानों को लामबंद करने निकले हैं देश के किसानों को समझाने निकले हैं की यह बिल किसान विरोधी है और वर्तमान बी जे पी सरकार चूँकि पूंजीपतियों की सरकार है अतः देश के कुछ गिने चुने औद्योगिक घरानों को लाभ पहुँचाने के लिए ही यह बिल पास करने की जल्दी में है . ऐसे में बी जे पी किसान हितैषी है? या कांग्रेस एवं उसके साथ विरोध में खड़ी ये १४ पार्टियां यह एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय है.
कल रेडियो पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी देश के किसानों को सम्बोधित करने आये और उन्होंने इस महत्वपूर्ण भूमिअधिग्रहण बिल पर किसानों को सम्बोधित किया उनको इस बिल से होनेवाले फायदे भी गिनाये . पर आज न कांग्रेस और न सरकार यह बताने समझाने का प्रयास कर रही है की पिछले ६५ वर्षों में जो भूमि अधिग्रहण किये गए और ये अधिग्रहण जिन योजनाओं के लिए किये गए उनमें खासकर कृषि के विकास के लिए शुरू किये गए सिंचाई परियोजनाओं में कितनी प्रगति हुयी तथा उनमें से कितनी ही योजनाएं के आजतक पूरी हुयी जो सच मायनों में किसान के हिट के लिए शुरू की गयीं थी और वर्तमान सरकार यह भी समझाए की वे योजनाएं जिनके लिए किसानों को भूमिहीन बनाया गया और ढेर सारे आश्वासन दिए गए उन विस्थापित किसानों का पुनर्वास या उनके परिवार को कोई रोजगार कोई नौकरी दी गयी सरकार देश के किसानों के सामने पहले इन आंकड़ों को प्रस्तुत करे जो योजनाएं कृषि में सिंचाई के लिए शुरू की गयी वे आजतक पूरे भी नहीं हुए और गरीब किसानों को अपनी खेती योग्य जमीन से हाथ भी धोना पड़ा इसका जवाब कौन? देगा . अतः मेरी राय में सरकार को सबसे पहली प्राथमिकता उन रुकी हुयी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए देनी चाहिए और प्रतिशत के मुताबिक ७० % प्रतिशत ध्यान उन रुकी पड़ी परीयोजनाओं पूरा करने के लिए कौन से संसाधनों की जरुरत है उस ओर देना चाहिए, बनिस्पत के नए अधिग्रहण की सोचना चाहिए आज भी हमारे देश की खेती अधिकतर भगवन भरोसे ही है यानि वर्षा पर निर्भर है आज किसान हर साल शहर की तरफ पलायन कर रहा है उसका पेट किसनीयत से नहीं भरता ,उसको किसनीयत के लिए खर्च की गयी अपनी लागत की भी भरपाई नहीं होती और और गरीब किसान साल dar साल महाजन के कर्ज के बोझ तले दबते जाने से आत्महत्या की सोचता है और वही करता भी है .वर्तमान मोदी सरकार अपने १० महीने के कार्यकाल में आंकड़े गिनाये कितने किसानों ने आत्महत्या कर ली और उस आत्महत्या का कारन क्या है ? अभी बीते १५-२० दिनों में देश में असमय बरसात और ओला वृष्टि हुयी किसानों की खड़ी फसल बर्बाद हो गयी उनको तत्काल कैसे लाभ पहुचाया जाये अगर इसके लिए कांग्रेस और अन्य १४ पार्टियां कुछ करती दिखतीं तो किसानों को भी इन नेताओं का भरोसा बहाल होता . सरकार भी अपनी पार्टी के सांसदों और कार्यकर्ताओं को किसानों के बीच भेजकर उनके जख्मों पर मरहम लगाने का काम करते उनको जल्द मुवाबजे दिलवने में उनकी स्थानीय प्रशासन से मदद दिलवाते फिर भूमि अधिग्रहण को समझने निकलते जो सही मायनों में किसानों के हिट में होता और आज इसकी की जरूरत है किसानों को

रे

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