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कांग्रेस से हाथ मिलाने के बाद जनता का विश्वास खो देगी ‘आप’ ? ‘jagran junction forum ‘

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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अरविन्द केजरीवाल का कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाने को कांग्रेस से हाथ मिलाना कहना ही अपने आप में एक गलत बयान है एक गलत आरोप है .जब बी जे पी ‘आप’ पार्टी से ४ सीटें ज्यादा जीतने के बाद भी सरकार बनाने से मना कर दी फिर क्या विकल्प बच गया था ? २ ही ना
१. या तो दिल्ली कि जनता पर दुबारा चुनाव के खर्चे का बोझ पड़े
२. या आम आदमी पार्टी जो दूसरे नंबर पर चुनाव जीती है वह कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाये
मैं कहता हूँ कोई इस बात कि चर्चा क्यूँ नहीं करता ना मिडिया ऐसा कह रहा है ना हीं. देश और दिल्ली कि कोई पार्टी ऐसा कह रही है इन बातों से साफ़ नजर आता है कि ‘आप ‘ कि चुनाव में अप्रत्यासित सफलता से सभी राजनितिक दल हैरान परेशान हैं और उनको डर हो गया है कि कहीं इस एक साल पुरानी पार्टी ने कुछ अच्छा कर दिखाया तो सभी भ्रष्ट नेता एवं भ्रष्ट अधिकारी जेल कि सलाखों के पीछे दिखाई देंगे शायद यही डर कुछ बुद्धिजीवी एवं नेताओं को परेशान किये हुए है जो जग जाहिर है कांग्रेस और बी जे पी दोनों ही राष्ट्रिय पार्टियों ने अब तक अपने को भ्रष्टाचार और महंगाई से लड़ने में असमर्थ बताया है और आम जनता आज कराह रही है यहाँ तक कि लोकतंत्र में जनता का विश्वास ख़तम होता दिखलाई पड़ रहा था नेता अपने आपको राजा कह रहे थे और ऐसा उनके ब्यवहार से प्रत्यक्ष दिखलाई पड़ने लगा था
अब जनता में एक उम्मीद जागी है और दिल्ली कि जनता को आम आदमी पार्टी से एक उम्मीद जगी है कि जरुर यह पार्टी कुछ अलग करेगी जनता को किये गए वादों को पूरा करेगी और तभी जनता ने ‘आप ‘ को यह चुनाव जिताया है अतः यह कहना सरा -सर गलत होगा कि अरविन्द केजरीवाल का कांग्रेस से समर्थन लेना कोई सोची समझी साजिश का राजनितिक परिणाम है यह संवैधानिक संकट था और कांग्रेस ने स्वयं उप राजयपाल को लिख कर दिया है कि वह बिना शर्त ‘आप ‘ का समर्थन करेगी ताकि इस नयी पार्टी को अपने वायदे पूरे करने का अवसर मिले एवं दुबारा चुनाव के खर्चे का बोझ दिल्ली कि जनता पर ना पड़े तथा देश कि राजनीती में एक सुचिता आये. आज नेता जनता से जुड़ें और जनता कि समस्या एवं जमीनी हकीकत को देखते हुए राजनितिक फैसले करें जनता का काम करें. जो आज होता दिखलायी नहीं दे रहा है राजनेताओं में एक फाइव स्टार कल्चर हावी हो गया था जिसको अरविन्द केजरीवाल ने ख़तम करने का प्रयास किया है कहाँ तो इन बातों कि प्रशंसा करनी चाहिए बजाये इसके सभी आलोचना में लगें हैं .पहले अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व क्षमता को २-४ महीने देख परख तो लिया जाये फिर तो जो गलत होगा उसकी आलोचना भी होना जरुरी है पर यह समय नहीं ऐसी बातों को तरजीह देने की .
अरविन्द केजरीवाल कि सरकार एक दो रोज में बनने कि पूरी सम्भावना आज दिखाई दे रही है अगर चे ‘ आप ‘ कि सरकार बन जाती है तो दिल्ली कि हालातों में परिवर्तन भी जरुर नजर आयेगा ऐसा विश्वास केवल मेरा ही नहीं बल्कि दिल्ली कि जनता को भी है
और ‘आप’ का यह निर्णय हर हाल में एक सही निर्णय कहलायेगा और दिल्ली कि हालातों में परिमार्जन भी अवश्य आएगा
राजनीती में आज तक सभी पार्टियां सभी नेता अवसर वादी ही रहें हैं खासकर देश कि सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस एवं बी जे पी लेकिन ‘आप ‘ पार्टी के इस इतिहासिक विजय के बाद इस तरह के कयास लगाना गलत साबित होंगे और जिस तरह आप पार्टी एक देश ब्यापी आंदोलन कि उपज है जिसमें सबसे ज्यादा हिस्सा देश के युवाओं ने लिया है यह परिवर्तन कि लहर भी ये युवा ही इस देश में लायेंगे और राजनीती कि एक साफ सुथरी छवि इस देश कि जनता को देखने का अवसर मिलेगा और इसमें वख्त लगेगा अतः अभी कोई विवेचना आलोचना पूर्वाग्रह युक्त कहलायेगा, अरविन्द केजरीवाल ने राजनितिक अवसर वाद कि कोई मिसाल नहीं पेश की है उन्होंने यह पार्टी जनता से पूछकर गठित किया है और अब सरकार भी जनता से पूछकर बनाने जा रहें .क्या इस देश कि राजनितिक इतिहास में कभी ऐसा हुवा है? सबसे पहले इसकी चर्चा होनी चाहिए और किसी पार्टी ने ऐसी मिसाल पेश करनी चाहिए आज देश कि जनता अपने आपको बेसहारा और लाचार समझने के लिए बाध्य हो गयी है और जनता कि ऐसी हालत का जिम्मेवार कौन है ? इस सवाल का जवाब ढूँढना ज्यादा जरुरी है .
कांग्रेस द्वारा ‘आप ‘ को समर्थन उनकी अपनी राजनितिक मजबूरी है अगर ऐसा कांग्रेस नहीं करती तो कांग्रेस पार्टी का वजूद खतरे में पड़ने की पूरी सम्भावना बन गयी थी इनका सफाया अभी ४ राज्यों में हुवा है अगले लोकसभा चुनाव में पूरे देश से इनका सफाया होना निश्चित था . कांग्रेस बहुत जोड़ तोड़ कर चुकी लोक लुभावन वायदे करती रही देश कि जनता के सामने. कई लोक लुभावन योजनाएं भी बनाती रही पर उन योजनाओं का क्रियान्वन सुनिश्चित करने का प्रयास कभी नहीं किया बस केवल एक दूसरे पर दोषरोपण करते रहे कभी राज्यों पर जिम्मेवारी थोप दी कभी विरोधी दलों पर थोप दी और जनता का काम रुका रहा अतः अगर जनता में अगर आज अविश्वास किसी पार्टी पर है तो वह कांग्रेस पर है और उसका परिणाम कांग्रेस ने इन चुनाओं में देख लिया .
अतः कांग्रेस से हाथ मिलाना समय कि मांग थी और अरविन्द केजरीवाल ने यह निर्णय जनता को कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों द्वारा किये जा रहे “बाटो और राज करो ” निति को समाप्त करने कि ओर एक पहल थी नाहीं अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस पार्टी के सामने आत्म समर्पण किया है नाहीं उन्होंने कोई मौका परस्ती दिखलाई है केजरीवाल का यह निर्णय समय कि मांग थी और दिल्ली कि जनता के हित में है

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