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तथ्यात्मक गलतियों और लच्छेदार भाषण से बदलाव की कितनी उम्मीद ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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लच्छेदार भाषणों से किसी बदलाव कि उम्मीद करना निरा मूर्खता के सिवाय और कुछ भी नहीं. हाँ , बदलाव तब आ सकता है जब नेतागण कोई आदर्श प्रस्तुत करें अपने ब्यवहार द्वारा लोगों को प्रभावित कर पाएं नेताओं के कार्य कलापों में जनसेवा झलके पर सच मायनों में नरेंद्र मोदी के भाषणों में बढ़ती भीड़ को सरकार में काबिज कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस कि समर्थक मिडिया के लोग भी हजम नहीं कर पा रहे हैं सभी मोदी कि गलतियां ढूंढने में लगे हुए हैं . मैं ऐसा नहीं कहता कि नरेंद्र मोदी कोई करिश्मा कर देंगे पर वर्त्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कि तरह रिमोट कंट्रोल पर चलने वाले प्रधानमंत्री भी नहीं होंगे, अगर वे अगले पी एम् बने भी तो. यूँ किसी महत्वपूर्ण मसले पर निर्णय लेने कि क्षमता ही नहीं हो, ऐसा कतई नहीं होगा ऐसा पूरा देश जानता है और मिडिया वाले भी इस सत्य को नकार नहीं सकते आज अपने देश में योजनाओं और साधनों कि कोई कमी नहीं है रोजगार कि भी कमी नहीं है पर सारी योजनाएं भ्रष्टाचार के भेंट चढ़ गयीं और सरकार असहाय बनकर देखती रही दोषियों को सलाखों के पीछे ले जाने के बजाये उनके सहारे ही सरकार में बहुमत बनाये रखा और सत्ता पर काबिज रहे देश कितना पिछड़ता गया गरीब कितना गरीब होता गया अमीर कितना अमीर होता गया इस सत्य को सभी जानते हैं और फिर चुनाव आया है सभी नेता एवं पार्टियां अपनी अपनी उपलब्धियां गिनाने में लगे हैं और जनता को सुनहरे सपने दिखा रहें हैं और इस देश कि जनता भी गजब है जो सब कुछ भूल जाती है और फिर से इन्हीं भ्रष्ट नेताओं के सर पर जीत का सेहरा पहना देती है जबकि जनता कमर तोड़ महंगाई से जूझ रही है लोगों का जीना मुश्किल होता जा रहा है और हमारे देश के नेता आने वाले चुनावों में करोड़ों खर्च करके जनता का कीमती वोट हासिल करने में जुटे हुए हैं देश कि सारी पार्टियां धनबल पर चुनाव को अपने तरफ लाने और अपनी जीत सुनिश्चित करने में लगी हैं. देश का कितना धन चुनावों कि भेंट चला जाता है जो एक अनुत्पादक खर्च ही कहा जायेगा इस खर्चे से किसी का भला नहीं होने वाला पर फिर भी ये नेता चुनाव में पानी कि तरह पैसा बहायेंगे क्यूंकि उनको इस धन को कमाने के लिए कोई परिश्रम करना ही नहीं पड़ा है जिनलोगों ने उनको धन मुहईया कराया है चुनाव जीतने के बाद ये उनका काम ही तो करेंगे, अब ऐसे में उसी के साथ कुछ जनता का काम हो गया तो जनता अपने आपको भागयशाली ही समझेगी अतः भाषणों में प्रतिस्पर्धा बंद होनी चाहिए और मूल समस्यायों पर नेताओं का ध्यान जाना चाहिए मुनाफाखोरी पर लगाम लगाना चाहिए भ्रष्टाचार को ख़तम करने का प्रयास करना चाहिए घोटाले बाजों कि संपत्ति कुर्क करना चाहिए विदेशी बैंकों में रखा गया कला धन देश में वापस लाना चाहिए ताकि देश का काम धन कि कमी के कारन न रुक पाये अगर ऐसा कुछ किया जाता है तो जरूर बदलाव कि उम्मीद की जा सकती है और इसीमें जानता कि भलाई है अगर ये जानता कि भलाई कि बात करते हैं तो कोरे भाषणों पर विराम लगाएं और िामंडरी से जनहित कि सोंचें और जानत के लिए काम करें इसके इतर किसी बदलाव कि उम्मीद करना बिलकुल बेमानी है .

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