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आस्था के प्रदर्शन पर आत्मनियंत्रण की आवश्यकता “Jagran Junction Forum “

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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आस्था पर आत्मनियंत्रण करना मुश्कील ही नहीं असंभव है लेकिन इसका सार्वजानिक प्रदर्शन करना आज की तारीख में सही नहीं रह गया है क्यूंकि हर हादसे के बाद बद इन्तजामी का ठीकरा प्रशासन और सरकार फोड़ने से कोई लाभ नहीं प्रशासन भी क्या करेगा? जब अपने देश में सबको पता है यहाँ पुलिस केवल वि आई पी की सुरक्षा करने में लगी है उनको वही आदेश है और आंकड़े बताते हैं की कई हजार लोगों पर एक पुलिस का अनुपात है और उस अनुपात से जनता की सुरक्षा के बजाये वि वि आई पी की सुरक्षा में ज्यादा पुलिस लगी हुयी है यह सब जानते हुए भी लोग अगर पुलिस सहायता या पुलिस सुरक्षा की बात सोचते हैं तो यह उन श्रधालुओं की सोंच पर अफ़सोस होता है अतः आज समय आ गया है की लोग समझें भगवान् या माँ शक्ती की देवी जिनकी लोग आराधना करते हैं और किसी खास तिथी पर ही उनके दर्शन से उनलोगों को वांक्षित लाभ मिलने की अन्ध्भावना उनमें रहती है यही कारन है किसी खास दिन या तिथि को अपर्याषित भीड़ हो जाती है और लोग पहले दर्शन करने के ललक में अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं माँ या भगवान् वहीरहने वाले हैं और रहेंगे चाहे जिस रोज भी आप उनका दर्शन करो पर इस सच को अन्धविश्वासी एवं झूठी आस्था के मारे लोग समझने को राजी नहीं और किसी शरारती तत्व के अफवाह फ़ैलाने से जब भगदड़ में किसी परिवार का मुखिया ही जान गवां बैठता है फिर उसकी इस नासमझी से उसका पूरा परिवार वर्षों तक दुःख ही झेलता रहता है तब वही माँ या शक्ती की देवी या भगवान् उसकी मदद के लिए कभी नहीं आते ऐसा लोग अक्सर अपने आस पड़ोस में देखते भी होंगे .
अगर आस्था ही जान के लिए खतरा साबीत होता है तो अंतरात्मा की आवाज सुननी चाहिए और उस कहावत को याद करना चाहिए “मन चंगा तो कठौती में गंगा ” पिछले दिनों कुम्भ के मेले अलाहाबाद में संगम नहाने में कई लोग रेलवे प्लेटफार्म पर भीड़ में कुचलकर मारे गए हालांकि वहां
बदइन्तेजामी नहीं थी. कुभ के मेले में मैं भी गया था पर तिथि विशेस पर नहीं गया और कुम्भ नहा भी आया मैं २६ फरवरी को गया था जो कोई तिथि नहीं थी और .मेरा मानना यही है की त्रिवेणी वहीँ रहेगी और उसमें स्नान का फल किसी दिन भी जाओ उतना ही मिलेगा फिर जरूर भीड़ में जान गवाने जाना है .अतः ऐसी आस्था जान के लिए खतरा ही साबीत होता आया है .भगवान् और भक्त के बीच सम्बन्ध सदियों से रहा है और वह अन्धविश्वास का रूप नहीं है वह सच्चा विश्वास के रूप में होना चाहिए और मन्नत पूरा करने का चक्कर भी नहीं रहना चाहिए क्यूंकि यह सरासर भगवन से सौदे बाजी है जो सच्चे भगत को कभी नहीं करनी चाहिए सच्चे दिल से भगवान को जहाँ भी याद किया जाए, अपना ध्यान और मन भगवान में लगाया जाए तो भगवान जरूर अपने भक्तों की सुनते रहें हैं और उनको अपनी भक्ति का शुभ फल मिलता ही है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्थान विशेस और आस्था का आपस में गहरा नाता जरूर है लेकिन स्थान विशेस हर तिथि पर हर समय पर एक ही रहता है देवी माता में शक्ती है इसको कौन नहीं जानता और उनकी शक्ती हर वक्त हम सबों को देखने को मिलती है जब जब इन्सान प्रकृति से खिलवाड़ करता है दैवी शक्तियों का प्रकोप झेलना ही पड़ता है उत्तरप्रदेश में १६ जून की घटना उसका एक प्रत्यक्ष उदहारण है जिस तरह पहाड़ों को काटकर सड़कें बनाईं गयीं उनके भौगोलिक रूप को अनदेखा किया गया तभी यह बिपदा लोगों को झेलनी पडीं पुराने ज़माने में तीरथ यात्रा दुर्गम स्थल होता था तब बिरले लोग वहां दर्शन करने जाते थे और वहां की पवित्रता को बनाये रखते थे प्रकृति से डरते थे प्रकृति को भगवान मानते थे पर आज विज्ञानं के विकास से विनाश की राह
को इन्सान ने पकड़ा है और उसीका खामियाजा हम सबों को भुगतना पड़ रहा है अतः धर्म स्थलों पर श्रधालुओं की संख्या पर नियंत्रण करना आज की जरुरत है और यही सही है . अगर लोग भगदड़ से बेमौत नहीं मरना चाहते तो एक ही रोज लाखों की संख्या में किसी तीरथ पर ना जाएँ और अगर आस्था और विश्वास के लिए जाएँ तो वहां अनुशासन बनाये रखे अफवाहों को ना सुने और सहयता के लिए पुलिस की मदद ही लेवें और सरकार एवं परशासन को भी भीड़ की अपेक्षा होने पर ब्यवस्था भी उसी को ख्याल में रख कर किया जाना चाहिए लोगों की जान चली जाने के बाद पुलिस अधिकारी को निलमबित कर देने से जिन लोगों ने जान गवई वे वापस तो नहीं लाये जा सकते और नाहीं कुछ पैसे मुवावजे केव तौर पर दे देने से उनकी क्षति की पूर्ती ही हो सकती है .
श्रधालुओं की दुर्घटना में मौत को नियती मानना हमारी भूल कही जायेगी जब हम मौत को दावत देंगें तो मौत ने आना ही है और भगदड़ वाली मौत कभी नियती नहीं कही जा सकती यह इंसानी भूल का नतीजा है और इसी कारन हजारों निर्दोष श्रद्धालू मारे जाते हैं और इसे नियती मानकर नजर अंदाज नहीं कर देना चाहिए बल्कि ऐसे मौकों पर सरकारी संस्थाओं द्वारा भीड़ को नियंत्रित करने की ब्यवस्था करना निहायत जरूरी है या तो लोगों को उस तरह से शिक्षित किया जाए की एक खास दिवस पर लोग दर्शन के लिए इस तरह हजारों लाखों की संख्या में आना बंद करें या फिर कोई टोकन सिस्टम लागू कर भीड़ को नियंत्रित करना चाहिए जरूर सरकार एवं प्रशासन की ही जिम्मेवारी बनती है की जब उनको पता है किसी खास मौके पर हजारों की संख्या में श्रद्धालू आने वाले हैं तो वहां भीड़ को नियंत्रित करने की प्रयाप्त ब्यवस्था की जाए वर्ना लोग इसी तरह अपनी जान गवाते रहेंगें और सरकार थोड़े से मुवावजे का एलान कर अपन पल्ला झाड लिया करेगी बेमौत तो इस देश की भोली जनता मरेगी . .

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