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आज यानि ९ अक्तूबर २०१३ के दैनिक जागरण संस्करण के मुख पृष्ट पर यह खबर छपी है “सम्पति के मामले से माया भी मुक्त ”
१.सी बी आई ने बसपा प्रमुख के खिलाफ केस बंद किया
२.सुप्रीम कोर्ट पहले ही निरस्त कर चूका है ऍफ़आईआर
आज एक खबर और सुनने को मिली है टेलीविजन पर जो बिहार से है , बिहार के जहानाबाद जिले के बाथे गाँव में एक भीषण नरसंहार हुवा था जिसमें निचली अदालत से १६ अभियुक्त करार दिए गए अपराधियों को फांसी की सजा सुनायी गयी थी उस फैसले को उलटते हुए पटना हाई कोर्ट ने उन सभी १६ दोषियों को बरी करने का फरमान सुनाया है निस्संदेह ऐसे फैसले को सुनने के बाद आम जनता के दिलों में प्रश्न उठता है और जनता के मन में अपने देश की जांच प्रणाली और न्याय प्रणाली पर संदेह होने लगता है इस फैसले का विरोध बिहार माले के नेता भट्टाचार्जी ने भी दर्ज कराया है .आखिर किसी मुकदमें का जांच अदालत की निगरानी में सी बी आई करती है जांच वर्षों चलती है लोग दोषी करार भी दिए जाते हैं और फिर कुछ सालों बाद सब कुछ ख़तम और लोग बरी हो जाते हैं ऐसा कैसे हो जाता है जनता जानना चाहती है आखिर मायावती और मुलायम सिंह पर आय से अधिक संपत्ति का मुक़दमा जब इतने अरसे तक चला जांच कभी की गयी कभी रोक दी गयी केवल इसलिए की उनका समर्थन कांग्रेस सरकार को मिल सके और कांग्रेस की सरकार अल्पमत में होकर गिर ना जाये यह सारी कवायद क्या इसके लिए ही की जा रही है यह एक अनुतरित प्रशन है इसका जवाब भी सरकार को देना चाहिए जनता की जानकारी के लिए अब तो जनता यह जान गयी है की जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएगा जेलों में बंद नेता छूटकर बाहर आ जायेंगे और राजनितिक सौदे बाजियां होंगी जो पार्टी उनको जेल से बहार निकालेगी उसके लिये ये नेता काम करेगे और फिर से चुनकर सरकार बना लेंगे जब सभी जानते हैं आज की वर्तमान लोकसभा में १६२ सांसदों पर गंभीर आरोप हैं उनके खिलाफ मुकदमा है फिर भी उनमें से किसी को यह सरकार अगला चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार नहीं दे रही है और चुनाव आयोग भी इस सिलसिले में कुछ करता दिखाई नहीं दे रहा है अगर सचमुच आज के नेता एवं पार्टियाँ राजनीती को अपराधियों से मुक्त करना चाहती हैं फिर तो कुछ कदम उठाने चाहिए अतः ऐसा लगता है आज सी बी आई तो पिंजरे में बंद तोता है ही अदालत भी सरकार की राजनितिक सहूलियतों के लिए काम कर रहें हैं आज स्वतन्त्र न अदालत है ना सी बी आई है . और यह लोकतंत्र के लिए बहुत ही खतरनाक बात है इस मुद्दे पर बहस होनी चाहिए और जरूर इसका खुलासा होना चाहिए की पहले कैसे मुलायम और मायावती पर आरोप लगे, मुकदमें चले सी बी आई ने जांच करने में सुस्ती दिखाई और आज वे दोनों बरी हो गए मुकदमा ख़तम हो गया इसकी सच्चई जनता को पता लगना चाहिए और नहीं तो जिसने झूठा आरोप लगाया उसको सजा होनी चाहिए आखिर इतने सालों तक सी बी आई और अदालत का कीमती वख्त बर्बाद करने का किसीको क्या हक़ है ? और तभी इस देश में लोकतंत्र है ऐसा देश की जनता को लगेगा .और नहीं तो सरकार कहे यह चुनावी फैसला है .न की अदालत का या मुक़दमे का .
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