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कहीं भाजपा और मोदी जी अवसरवादी राजनीति का लाभ लेना तो नहीं चाहते ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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कुछ दिनों पहले भाजपा के मनोनित प्रधानमंत्री उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने किसी चुनावी भाषण में कहा वे “देवालय से ज्यादा शौचालय को प्राथमिकता देंगे ” अगर वे प्रधानमंत्री बनाये गए तो ! और कुछ वर्षों पहले देश के ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश ने भी कभी ऐसा ही बयान दिया था तब भाजपा ने आपत्ति जताई थी और इस वक्तब्य को हिन्दू धर्म और मंदिरों का अपमान कहा था और काफी हो हल्ला भी मचाया था ये दोनों बातें सच है आज विश्व हिन्दू परिषद् के प्रवीण तोगड़िया जी इसके विरोध में खड़े हो गए हैं .
लेकिन अगर वास्तविकता के तौर पर सोचा जाए तो देश की जनता को “शौचालय की जरुरत देवालय से ज्यादा महत्वपूर्ण है आज देश में मंदिरों की कमी नहीं है पर निश्चित रूप से सार्वजनिक शौचालयों की भीषण कमी है और इस कमी के चलते हमारे देश, खासकर ग्रामीण क्षेत्र के लोग शौच के लिए बाहर खुले में जाने को मजबूर हैं यहाँ तक की महिलाएं भी शौच के लिए बाहर जातीं हैं क्या यह सही है? इस कटु सत्य की ओर किसी पार्टी के नेता का ध्यान क्यूँ? नहीं जा रहा है. अगर प्राथमिकता के आधार पर देखा जाये और सोचा जाये तो शौचालय जो आज बुनियादी जरुरत है और सदी के हर दशक में रहेगा इस बात से किसी को इंकार होना असंभव है और यह जनविरोधी भी कहलायेगा इससे हमारे देश का वातावरण भी प्रदूषित होता है और महिलाएं असुरक्षित भी रहती हैं अगर वे शौच के लिए बाहर जाती हैं वैसे ही महिलाओं पर तरह तरह से अत्याचार होता रहता है अगर वे शौच के लिए भी बाहर जाती रहेंगी फिर उनका असुरक्षित होना लाजमी है अतः मोदी जी और जयराम रमेश जी के बक्तब्य का स्वागत किया जाना चाहिए और इसको गंभीरता से लेना चाहिए ग्रामीण इलाकों में सरकार की योजना भी आई थी पर इसको कारगर ढंग से लागू नहीं किया जा सका है ग्रामीण लोग भी मानसिक तौर पर इसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाए हैं अतः आज जरुरत है ग्रामीणों को इसके लिए शिक्षित किया जाए और यह बताया जाये की बाहर शौच के लिए जाना उनके स्वास्थ्य के लिए ही हानिकारक है जब तक ग्रामीणों को इसके लिए तैयार नहीं किया जायेगा यह योजना लागू नहीं की जा सकती शौचालय तो हर घर में होना ही चाहिए शहर हो या गाँव इस सच्चई से कौन समझदार ब्यक्ति इनकार कर सकता है आज देश की राजधानी दिल्ली में भी सार्वजानिक शौचालय की कमी है पर देवालयों की कमी तो नहीं है इसको धर्म से जोड़ना निहायत ही दकियानूसी बात होगी देश को अगर आज जरुरत है तो ” शौचालय और विद्यालय” की ना की देवालय की और यही जनहित में है इससे किसी भी धर्म का अपमान नहीं होता और इसके बनाये जाने से मंदिरों के बनाने में कोई रूकावट भी नहीं होता इस विषय को राजनीती से ऊपर रख कर सोचा जाना चाहिए इसे बी. जे. पी और कांग्रेस के रूटीन झगडे से अलग रखना चाहिए और हर हर हाल में शौचालय एवं विद्यालय को द्वालय की अपेक्षा प्रथमिकता दिया जाना चाहिए .

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