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हिंदी ब्लागिंग हिंदी को मान दिलाने में सार्थक हो सकती है या यह भी बाजार का हिस्सा बनकर रह जायेगी ? ” Contest “

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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इसमें संदेह नहीं की जब से हिंदी में ब्लाग लिखने का चलन हुवा है तब से अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को अच्छा सम्मान मिला है और नित नए विचारक एवं लेखक आज हिंदी में ब्लाग लिख रहें हैं खासकर जागरण समूह द्वारा जब से हिंदी में ब्लाग लिखने की सुविधा प्रदान की गयी है उससे लिखने वालों का उत्साह बढ़ा है. मैं जागरण समूह का सदा आभारी रहूँगा जिन्होंने मुझ जैसे साधारण लिखने वाले को अपने फ़ोरम पर जगह मुहैयिया करवाया है .नव परिवर्तन के दौर में हिंदी ब्लागिंग निश्चीत रूप से हिंदी भाषा को प्रचारित करने की दिशा में एक सफल प्रयास है और अगर इसे बाजार की भाषा भी बनायीं जाये तो हिंदी के प्रचार प्रसार में ज्यादा मदद मिल सकती है जैसे खाने पीने की वस्तुओं पर छपे नाम सामान के प्रति विशेस जानकारी अगर हिंदी में भी लिखा जाने लगेगा तो उससे भी हिंदी भाषा ज्यादा लोकप्रिय होगी, अगर सरकार चाहे तो ऐसा कानून बना सकती है की उपभोक्ता सामानों पर हिंदी में लिखना जरूरी होगा मेरा मतलब अन्य भाषाओँ के आलावा हिंदी में भी लिखने को जरूरी बनाया जाये अतः उपभोक्ता सामानों पर ३ भाषाओँ में छापना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए १. क्षेत्रीय भाषा में .२.अंगरेजी में .३ हिन्दी में . अगर अपने देश के नेता एवं मंत्री सचमुच हिंदी को लोकप्रिय बनाना चाहते हैं हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाना चाहते हैं तो उनको लोकसभा में कानून द्वारा ऐसा विधेयक लाना चाहिए जिससे हिंदी को ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ें स्कूलों में भी हिंदी पढना अनिवार्य करना चाहिए बनिस्पत की अंगरेजी को साथ ही सरकारी कार्यालयों में काम- काज में भी हिंदी का प्रयोग करना अनिवार्य करना जरूरी है अभी तक सरकारी कार्यालयों में सप्ताह में एक दिन शायद बुधवार को हिंदी में लिखने को जरूरी बनाया गया है वह भी कडाई से ब्यवहार में नहीं लाया जाता हिंदी को लोकप्रिय बनाने को थोड़ी सख्ती भी करनी पड़े तो करना चाहिए हाँ हिंदी को थोपना नहीं चाहिए हिंदी को कैसे जन- जन की भाषा बनाई जाये इस ओर सरकार द्वारा कुछ सार्थक कदम उठाने की जरूरत है पहले नेता लोग ही ऐसा निश्चय करें की हम लोकसभा एवं राज्यसभा में केवल हिंदी में ही बोलेंगे ताकि हिंदुस्तान की अधिकतम आबादी उनकी बातों को समझ सके जरूरत पड़ने पर क्षेत्रीय भाषा में उसका अनुवाद पढ़ा जाए कुछ मामलों में या कुछ राज्यों के लोगों के लिए इसकी आवश्यकता पड़ेगी वर्ना आज हिंदी हिंदुस्तान की बहुतायत आबादी समझती है और ब्यवहार में भी लाती है कुछ ज्यादा पढ़े लिखे लोग हीं हिंदी बोलने में अपनी बेयीजती समझते हैं ये उनका झूठा अभिमान है, अहम् है जिसको समाप्त करना चाहिए किसी ब्यक्ति के सम्मान में कोई कमी नहीं हो जाती अगर वह अपने देश की राष्ट्रभाषा में बोलता है या अपने कार्यों को सम्पादित करता है अतः मेरी राय में अगर विज्ञापनों एवं उपभोक्ता सामानों पर हिंदी को तरजीह दी जाये तो इससे भी हिंदी को और लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी . और ब्लागिंग से तो हिंदी भाषा को बढ़ावा मिल ही रहा है

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