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“Contest ” हिंदी दिवस पर ‘पखवारा ‘ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूँ ही चलता रहेगा यह सिलसिला?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ आयोजित करने का कोई औचित्य नहीं है . उससे हिंदी भाषा को जो नाम मिलना चाहिए जो पहचान बननी चाहिए वैसा कुछ भी होता दिखाई नहीं दे रहा है अतः इसको मेरी राय में महज औपचारिकता निभाना ही कहेंगे. सबसे पहले देश में हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए ,हिंदी को उचित पहचान दिलाने के लिए राजनितिक इक्षा शक्ति की जरुरत है जो आज नहीं है , हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए उसको लोकप्रिय बनाने के लिए हिंदी का ही उपयोग ज्यादा से ज्यादा कैसे हो ? इस ओर सरकार एवं गैर सरकारी संस्थानों का ध्यान होना चाहिए जैसे विद्यालयों ,महाविद्यालयों में हिंदी पर शोध करने वालों की संख्या में इजाफा कैसे हो ? इस पर ध्यान देने की जरुरत है हिंदी पर शोध करने वालों को सम्मानित करने की भी जरुरत है इससे हिंदी के प्रति विद्यार्थियों एवं शोधकर्ताओं का रुझान बढेगा और धीरे धीरे हिंदी इतनी लोकप्रिय हो जाएगी की हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान भी मिल सकेगा और लोगों की रूचि भी हिंदी पठन -पाठन में बनने लगेगी ऐसा नहीं होना चाहिए की जिसने हिंदी में पढाई पढ़ी हो उसको रोजगार से वंचित रहना पड़े या उच्च पदों के लिए उसका चयन नहीं हो सके . पिछले दिनों आई ए एस परीक्षा में अंग्रेजी को अनिवार्य करने की कवायद हो रही थी और उसके लिए परीक्षा प्रणाली में सुधार करने की सरकार सोंच रही थी जिसका विरोध हुवा और यह सही कदम कहा जायेगा इसका विरोध होना ही चाहिए था , बजाय अंग्रेजी के हिंदी को अनिवार्य करने की आज जरुरत है और सरकार का यह कहना की हिंदी पढने से अधिकारीयों को विदेशी राजनयिकों के साथ बात करने में कठिनाई होती है और इसके लिए अंग्रेजी भाषा को अनिवार्य बनाया जा रहा है यह सरासर गलत परंपरा को लागु करना है इन सब कामों के लिए दुभाषिया होता है, दोनों देशों की तरफ से अतः इसको कारन मानकर हिंदी को हासिये पर ले जाना देश विरोधी कदम है राष्ट्रभाषा का सम्मान कैसे हो? ऐसे कदम ही सरकार द्वारा उठाये जाने चाहिए और हर हाल में, हिंदी कैसे? लोकप्रिय बने कैसे ज्यादा लोग हिंदी पढने एवं हिंदी बोलने के लिए प्रेरित हों इस ओर सोचना जरुरी है इस ओर काम करना जरुरी है और सरकार द्वारा समुचित कदम उठाने ही पड़ेंगे सरकारी कार्यालयों के काम- काज में हिंदी का उपयोग अनिवार्य करने से भी हिंदी को ज्यादा मान्यता मिलेगी जैसे आज चयन प्रकिरिया में अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जा रही है उसी तरह अगर हिंदी को प्राथमिकता दी जाने लगेगी तो लोग जरुर हिंदी पढना ,हिंदी बोलना और हिंदी लिखना सीखने लगेंगे और फिर जाकर हिंदी को सही पहचान मिलेगी महज पखवारा के आयोजन से हिंदी का कोई भला नहीं होने वाला और इस सबका का कोई औचित्य नहीं है बस यूँ ही चलता रह जायेगा यह सिलसिला .
अशोक कुमार दुबे ,द्वारका नयी दिल्ली -७५

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