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“Contest ” क्या हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लाई जा सकती है ? अगर हाँ , तो किस प्रकार ? अगर नहीं, तो क्यों नहीं ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा है पर हिंदी को जो जगह मिलनी चाहिए थी वह जगह आजादी के ६६ वर्ष बाद भी हिंदी भाषा को पूर्ण रूप से तो दूर आधे अधूरे रूप से भी हमारे देश के नेता एवं जनता पूरे देश में राष्ट्रभाषा की तरह अपना नहीं पाए हैं और यह अपने देश का दुर्भाग्य है इसमें बहुत हद तक सरकारी मशीनरी भी जिम्मेवार है केवल कार्यालयों में सप्ताह में एक रोज हिंदी के प्रयोग के लिए पोस्टर लगाकर रखने से हिंदी की लोकप्रियता नहीं बनायीं जा सकती और राष्ट्रभाषा को जबरदस्ती लोगों पर थोपा भी नहीं जा सकता अपने देश में भाषा को लेकर कई बार आन्दोलन भी हुए हैं और अपनी राष्ट्रभाषा को अपनाने के लिए देश के कई राज्य तय्यार नहीं हुए हैं जब तक देश के सभी राज्यों में एक राष्ट्रभावना जो अपनी राष्ट्र की भाषा है इसके प्रति लोगों में नहीं जाग्रति नहीं होती राष्ट्रभाषा से प्रेम नहीं होता राष्ट्रभाषा को बोलना गर्व की बात नहीं मन आती तब तक इसको सम्मान जनक भाषा का दर्जा नहीं दिलाया जा सकता, सबसे पहले इसे बोल चाल के रूप अपनाना होगा फिर शिक्षा क्षेत्र में इसे बढ़ावा देना होगा देश के हर राज्य में और हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है इसकी भावना लोगों में जगानी होगी बेशक हर क्षेत्र की मातृभाषा अलग अलग हो सकती है पर आम तौर पर हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में कबूलना होगा विकसित करना होगा पर अफ़सोस ऐसी सोंच की कमी है अंग्रेजी बोलना हर पढ़े लिखे को आज सम्मानजनक महसूस होता है पर हम हमेशा से देखते आ रहें हैं जब भी कोई विदेशी राजनयिक या राष्ट्राध्यक्ष हमारे देश में आते हैं एक दुभाषिया उनके साथ होता है और वे गणमान्य लोग अपनी बातों को अपनी भाषा में ही प्रस्तुत करते हैं लेकिन जब हमारे देश के प्रधानमंत्री ही अगर किसी विदेशी दौरे पर जाते हैं तो अंग्रेजी ही बोलते हैं एक ही प्रधानमंत्री इस देश के हुए अटल बिहारी बाजपाई जो की संयुक्त राष्ट्रसंघ में भी हिंदी में बोले थे और वहां तालियाँ बजी थीं यह एक इतिहासिक क्षण था एक इतिहासिक कदम था अगर इसे बरकरार रखा जाता तो जो प्रदेश आज हिंदी को अपनाने से इंकार कर रहें हैं वे भी हिंदी को अपनाने लगते किसी भी देश के लिए राष्ट्रभाषा पर गर्व होना चाहिए यहाँ राष्ट्रभाषा को पहचान की ही दिक्कत है राष्ट्रभाषा से किसी को प्रेम नहीं है अतः इसको सम्मानजनक भाषा के र्रूप में मुख्य धारा में तब तक नहीं लाया जा सकता जब तक पूरे देश की जनता इसको राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दे देती है , इसे तहे दिल से अपना नहीं लेती है हिंदी बोलने को गर्व नहीं मानने लगती है तब तक इस हिंदी को सम्मानजनक दर्जा कैसे मिल सकता है ? क्यूंकि किसी भी देश में राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान होना उस पर गर्व होना चाहिए लेकिन अपने देश में इसको थोपने का ही प्रयास अब तक किया गया है और वह भी आधे अधूरे मन से हिंदी बोलने को पिछड़ापन नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि अंग्रेजी को दोयम दर्जे की भाषा समझना चाहिए तभी हिंदी भाषा सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लायी जा सकती है , वरना जो आज का माहौल है जो आज की सोंच है जो सिक्षा का स्तर है जो स्कूलों कालेजों में सिलेबस है उसके हिसाब से इसे मुख्य धारा में लाना और सम्मान दिलाना मुश्किल है

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