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कुपोषण के लिए जिम्मेवार कौन ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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कनाडा की कंपनी ने अपने सर्वे में कहा है की विश्व के कुल कुपोषित आबादी का ४० % भारतवर्ष में रहता है . सरकार एवं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कुपोषण की भारी चिंता भी है कई योजनायें भी कुपोषण दूर करने के लिए चलायी जा रही हैं लेकिन कुपोषितों की संख्या में बढ़ोतरी ही हो रही है और यहाँ सवाल यह है की इन सब के लिए जिम्मेवार कौन है ? लेकिन इस प्रश्न का उत्तर तो एक लाईन में है की अपने देश भारतवर्ष में जवाबदेही ही किसी की नहीं है, किसी बात की, और जब तक अपने देश में जवाबदेही तय नहीं होगी तब तक ऐसे सवालों का जवाब ढूँढना बेमानी ही कहा जायेगा आज अपने देश में क्या हो रहा है? सरकार जो अल्पमत में है भ्रष्टाचार कई मामले अदालत में चल रहे हैं और यह सरकार अपराधियों को सी बी आई का भय दिखा कर एस पी और बी एस पी को अपने पाले में किये हुए है अब ऐसे सरकार को कोई जवाबदेह सरकार कह सकता है और यहाँ विपक्ष भी ना के बराबर है क्यूंकि भ्रष्टाचार के आरोप उनकी पार्टी पर भी लगा हुवा है आये दिन घोटालों का खुलासा होता है और सरकार खुलासा करने वाले को ही साधने में जुट जाती है और जांच के लिए भी तैयार तब होती है जब सुप्रीम कोर्ट की फटकार मिलती है और इतना कुछ होने पर भी जनता मौन बैठी रहती है इसी देश में लाखों टन अनाज खुले आसमान के निचे रखकर सडाया जाता है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश देने के बाद भी जरूरतमंद लोगों को दिया नहीं जाता अनाज से ही कुपोषण दूर होगा ना जब उसीको सडाया जाता रहेगा तो कुपोषण कैसे दूर होगा अतः यह कहना की इसके लिए सरकार कुछ सोचती है निरर्थक है और यहाँ की जनता मुर्दा सामान जिंदगी भगवान भरोसे जी रही है वरना सड़ते अनाजों को लूट कर ले जाना चाहिए अगर सरकार उसे नहीं देती मुझे नहीं लगता जनता द्वारा उठाये गए किसी ऐसे कदम से सरकार की आँख नहीं खुलेगी और जो लोग अनाज को सड़ने देने के जिम्मेवार हैं उनको सजा भी सुनाई जाएगी अगर किसी को सजा होगी तभी तो ऐसी गलतियों की पुनरावृति नहीं होगी अतः अब वख्त आ गया है सरकार जनता से कहे हम आपकी समस्यायों को समाधान नहीं दे सके फिर से चुनकर नयी सरकार लाओ लेकिन ऐसा कभी होने वाला नहीं और इस देश में जिम्मेवारी कोई लेने वाला नहीं फिर समस्या चाहे कुपोषण की हो अशिक्षा की हो स्वास्थ्य सम्बन्धी हो महंगाई हो सब कुछ ज्यूँ की त्यूँ बनी रहेगी देश चलता रहेगा सरकार चलती रहेगी लोग मरें या जियें अपनी बला से हम तो लोकतंत्र का ढिंढोरा पीट रहें और अपने को कह रहे हैं हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं क्या इस देश में लोक को कोई पूछ रहा है अपराधी राज कर रहें हैं इस लोकतंत्र में और यह लोकतंत्र की सबसे घिनौनी तस्वीर है जिस देश में हजारों लोगों की जाने चली जाती हैं और नेता राजनीती करते हैं एक दुसरे पर दोषारोपण करते हैं ऐसे लोग बाढ़ में फंसे लोगों को क्या बचायेंगे? हवाई सर्वेक्षण करके वापस दिल्ली में बैठ कर बयानबाजी करेंगे बुद्धिजीवी कुछ भी कहते रहें क्या फर्क पड़ेगा कुपोषित कुपोषित ही मरेगा और मलाई खाने वाले मलाई खायेंगे इसको ही लोकतंत्र कहते हैं जब एक कमपौन्दर के घर से २०० करोड़ रुपया नगदी पकड़ा जा रहा है फिर मिनिस्टर के घर कितना पड़ा होगा इस पर विचार करना होगा कुपोषण दूर करने के लिए धन की भी आवश्यकता होगी और इस देश का धन तो काला धन बनकर विदेशों में जा रहा है फिर देश से कुपोषण क्यूँ कर दूर होगा बुद्धिजीवी वर्ग इस गंभीर बात पर चर्चा करे तो बेहतर होगा जिसके लिए २००४ के चुनाव के मौके पर दोनों राष्ट्रिय पार्टियाँ कांग्रेस एवं बीजेपी अपने को संजीदा बता रही थी और घोषणा कर रही थी की हम सत्ता में आये तो सबसे पहले काले धन को देश में वापस लायेंगे आज वह धन वापस देश में लाया गया होता तो हमारे देश की आर्थिक हालत यु न बिगडती पर यहाँ देश और देश की जनता की किसको पड़ी है वह तो चुनाव के समय याद आएगी झूठे वायदे किये जायेंगे और फिर सरकार बन जाने के बाद वही पैसों का बन्दर बाँट क्या कोई इन सब बातों पर भी चर्चा करेगा की उस नेता को उस मंत्री को टिकट कैसे मिल जाता है जो अपने क्षेत्र के लोगन से वायदा करके निभाता नहीं है कोई इस पर कानून बनेगा क्या? सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधारों पर भी कोई गाईड लाईन या सुझाव देगा क्यूंकि आज देश को इसीकी जरुरत है
१. जिम्मेवारी तय हो और जिम्मेवारी नहीं निभाने की सूरत में त्याग पत्र देना अनिवार्य हो जब ऐसा होगा तभी समस्यायों का समाधान संभव है वर्ना यह एक चर्चा है और यूँ चर्चा करके इसको ख़तम करना होगा और आगे चल कर ये चर्चे भी बंद हो जायेंगे

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