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क्या इंसानी लालच की वजह से नाराज है प्रकृती ? jagran jankshan

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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इंसानी लालच का नतीजा ही आज का इन्सान भुगत रहा है इसमें कोई संदेह नहीं आज विकास के नाम पर हम अपने भौगोलिक नियमों को ताक पर रखे हुए हैं और प्रदुषण तो चरम सीमा पर है आज के दिन पहाड़ हो या शहर सभी जगह प्रदूषण दिनों दिन बढ़ता जा रहा है . केवल दिल्ली में प्रदुषण पर नियंत्रण कर देने से पूरे देश का वातावरण प्रयावर्ण की दृष्टि से सुरक्षित तो नहीं हो जाएगा आज पहाड़ों में खासकर उत्तराखंड में कितने ही पनबिजली परियोजनाएं चल रहीं हैं कागजों में उन्होंने प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति भी ली होगी और उस अनुमति को देने में केवल पैसों का खेल हुवा होगा पैसे मिल गए आपको अनुमति मिल गयी बेशक उससे प्रयावरण और वहां पर रहने वाले लोगों की जिंदगी पर क्या संकट आनेवाला है इसको देखने वाला आज कोई नहीं यहाँ तो अनुमति मिलने में देरी केवल कमीशन के लिए होती है कोई अधिकारी इस पर गौर नहीं करता की उससे आगे चलकर कितना मानवीय नुकसान होने वाला है अतः आज जो प्राकृतिक त्रासदी आई है उसमें प्रकिरती की नाराजगी तो है ही हमारी गलतियाँ भी कारन है ऐसे हालातों से हमको रूबरू करा रही हैं .
हमारे उद्देश्य ही गलत हैं तभी तो प्रगति का जो तरीका हमने ढूंढा है वह जानलेवा है और पर्यावरण के साथ एक खतरनाक खेल हम आज खेल रहें हैं एक तरफ सैलानियों का भारी संख्या में आना और बड़ी बड़ी गाड़ियाँ डीजल का धुवाँ उगलती पर्यावरण को दुषीत करने का काम कर रहीं हैं वहीँ भारी मात्रा में गाड़ियों एवं लोगों के आने जाने से वहां का मौसम जो ठंढा हुवा करता था वह धीरे धीरे गरम होता जा रहा है हाँ उचायिओं पर अभी भी ठंढ है क्युकी इस बार बारिश और बाढ़ से तो लोग मरे ही ठंढ से भी लोगों की जान गयी अतः इस यात्रा को नियंत्रित करना एक उपाय हो सकता है इस तरह की प्राकृतिक आपदा से बचने का दुसरे एक अध्यन की जरुरत है की जो प्रोजेक्ट एवं योजनायें वहां पर चल रहीं हैं उनसे पहाड़ों का संतुलन कितना बिगड़ता है भूस्खलन में किन कारणों से बढ़ोतरी हो रही है लगातार पहाड़ों की कटाई कर सड़कें चौड़ी की जा रहीं हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा वाहन को ले जाया जा सकें आज से ५०-६० साल पहले लोग इन यात्राओं पर ज्यादा करके पैदल जाते थे और अधिकतर अधेड़ और वृधावस्था वाले लोग ही तीरथ करने जाते थे अब तो लोग हेलीकाफ्टर से एक दिन में तीरथ करके घर आ जाते हैं इसको यात्रा थोड़े कहते हैं आज यह चार धाम यात्रा, यात्रा कम है और पिकनिक ज्यादा है आज लोग इन पहाड़ों में भगवान भोले शंकर का दर्शन करने नहीं बल्कि पिकनिक मनाने जाने लगे हैं सब पैसे का खेल आज है लेकिन हाँ प्रकिरती ने आज ऐसा कहर ढाया की क्या अमीर और क्या गरीब सब भिखारी नजर आ रहे थे अतः इस यात्रा की महत्ता को भी लोगों ने कम किया है अब इस यात्रा को अमरनाथ यात्रा की तरह नियंत्रित करने की जरुरत है वर्ना लोग अपनी गलतियों से मरते हैं और दोष सरकार को देने लगते हैं और भारतीय सेना अपनी जान की बाजी लगाकर ऐसे कठिन समय में लोगों के काम आती है .अतः ध्यान रहे प्रगति करना जरुरी है पर पर्यावरण संतुलन को बनाये रखना ज्यादा जरुरी है खासकर उन परियोजनाओं के चलते जो लोग विस्थापित हुए उनको पुनर्वास की ब्यवस्था को सबसे महत्वपूर्ण मानना चैये जो की नहीं मन जाता वर्षों लोग मुवावजे का इन्तेजार करते करते मर जाते हैं मुवावजा नहीं मिलता . अतः इस तरह से किया गया यह विकास विनाश का रूप लेती रहेगी भविष्य में भी .
जो लोग यह कहते हैं की बड़े पैमाने पर विकास के लिए थोड़े बहुत समझौते तो करना जरुरी है वही लोग ऐसे विनाशकारी योजनाओं की पैरवी करते हैं उसके पक्षधर हैं अपने तो वे शानदार बंगलों में रहते हैं और आम पहाड़ी लोगों की जान को जोखिम में डालते हैं और उनकी जान से खेलने को ही विकास का नाम देते हैं और इस विपत्ति में सैलानियों ,teerthyatrion के alava बहुत saari जाने तो वहां के स्थानीय लोगों की भी गयी क्यूंकि वहां के मूल निवासी तो तीर्थ यात्रियों और सैलानियों के भरोसे ही रहते हैं उनके लिए कोई और रोजगार का साधन किसी सरकार ने कहाँ मुहयिया कराया ही नहीं है और दुर्भाग्य से आज उत्तराखंड में कांग्रेस का ही राज है तभी तो आपदा प्रबंधन का दफ्तर सोया रहा उनकी कोई तय्यारी भी नहीं थी क्या सोनिया गाँधी या rahul गाँधी ने किसी को इन गलतियों का जिम्मेवार ठहराएंगे आज अपने देश में सत्ता सबको चाहिए पर जवाबदेही उनकी कुछ भी नहीं आज अपने देश के नेता एवं अधिकारी जवाबदेही के नाम पर बिलकुल मुक्त हैं ऐसा अपने देश भारतवर्ष में ही संभव है जहाँ आम गरीब जनता की जान की कोई कीमत नहीं है जिन देशों की आज ये नक़ल कर रहें हैं कभी सोंचा है वहां के नागरिकों की जान की कीमत किस तरह वे समझते हैं कभी इस पर भी गौर करने की जरुरत है अतः जो लोग विकास के लिए थोड़े बहुत समझौते करने पड़ते हैं इस बात के हिमायती हैं वे विकास का मोडल कैसा हो वे पश्चिमी देशों से सीखें .
जो लोग इस घटना को ज्योतिष शास्त्र से जोड़कर देखते हैं उसके विषय में मेरी राय यही है की ऐसी आपदाओं का वैज्ञानिक कारन तो हो सकता है भौगोलिक कारन भी हो सकता है पर ज्योतिष का यह कहना की यह आपदा ” सुपरमून” के चलते आई है तो उनकी वे जाने अतः इस आधार के बारे में मैं कुछ नहीं कहता हाँ कुछ लोग इस घटना का कारन गुप्तकाशी में स्थित मंदिर जो की धारी देवी का था उसको विस्थापित करने के कारन ही यह आपदा आई है ऐसा कहते हैं कभी पहले भी प्रयास किया गया था उस मूर्ती को विस्थापित करने का जो लोग योजनाओं पर काम कर रहें हैं उनके लिए वह रूकावट था वह मंदिर isiliye उसमें स्थापित मूर्ती को पहले भी हटाने का प्रयास किया गया था और तब भी कोई घटना गह्तित हुयी थी यह कहाँ तक सच है मैं नहीं जनता पर इस तथ्य में सच्चाई हो सकती है क्यूंकि यह यात्रा baghvan भोले शंकर की aakr जो ज्योतिर्लिंग है इसको अमन में रखकर ही करते हैं तो देवी देवताओं का प्रकोप तो हो ही सकता है ऐसा मैं भी मानता हूँ

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