Menu
blogid : 8115 postid : 154

क्या भारतीय सिनेमा समलैंगिकता को बढ़ावा दे रहा है ? -जागरण जंक्शन फोरम

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
  • 166 Posts
  • 493 Comments

समलैंगिकता जैसी बेकार विषय की चर्चा ही अपने आप में इस सामाजिक बुराई को बढ़ावा देने का काम कर रही है .
इसमें यह प्रश्न ही कहा उठता है की भारतीय सिनेमा समलैंगिकता को बढ़ावा दे रहा है या कुछ समलैगिक लोग इसे बढ़ावा दे रहे हैं . यह अमानवीय सामाजिक बुराई सदियों से समाज में हो रही है पर चर्चा का विषय इसको मिडिया और कुछ सरफिरे बुद्धिजीवियों ने ही बनाया है और रही सही कसर आपके जागरण जंक्शन फोरम ने पूरी कर दिया है.
सिनेमा की दुनिया के प्रख्यात सिने- निर्देशक को केवल समलैंगिकता के लिए याद करना या इसके चलते ही वे इतने मशहूर निर्देशक बने, यह कहना ही अपने आप में उस आदमी की बीमार मानसिकता और घटिया सोंच का परिचायक ही कही जाएगी इस प्रख्यात निर्देशक को उसके द्वारा बनायीं गयी यादगार फिल्मों के लिए क्यूँ? न ! याद किया जाये, जो उनके समलैंगिक होने की विशेषता बताई जाये
अब प्रश्न्वार मेरे विचार यु हैं :-
१.मेरी राय में समलैंगिकता को समाज में बढ़ावा देने के लिए सिनेमा को जिम्मेदार सीधे से ठहराना एकदम नाजायज तर्क है क्यूंकि यह सामाजिक बुराई कुछ बीमार मानसिकता वाले लोगों द्वारा समलैंगिक बन जाना जो की एक अमानवीय ब्यवहार है और यही इसके लिए जिम्मेवार कुछ लोग हैं और इसे एक बीमारी के रूप में जानने समझने की आज जरुरत है और इसकी पैरवी करना या इसके लिए क़ानूनी लडाई लड़ना समाज में एक गलत परंपरा और सेक्स के लिए अमानवीय कृत्य को बढ़ावा देने जैसा है. ऐसे में कल को वैसे लोग, जो जानवरों के साथ भी सेक्स करने के आदि रहे हैं उनको भी मौका मिलेगा अपनी अमानवीय इक्षा की पूर्ती के लिए क़ानूनी संरक्षण दिया जाये कहने का
और कभी इस पर भी चर्चा होने लगे तो क्या कहा जा सकता है ? . इस बुराई को बढ़ावा दुनिया के कुछ विदेशी सरफिरे लोग दे रहे हैं और उनकी देखा देखि भारतीय समलैंगिक लोग भी जुलुस निकाल कर अपनी मांग रखने लगे हैं सबसे गलत तो इसको एक यादगार दिवस की तरह मनाने वालों का है उनको तुरंत नकारा जाना चाहिए .
२. समलैंगिक ब्यक्ति कभी रोल माडल नहीं कहा जा सकता कहने को तो लोग कहते हैं मशहूर शायर ग़ालिब भी समलैंगिक ब्यक्ति थे . क्या ? उनको भी हम केवल इसलिए याद करते हैं ? नहीं ना ! ग़ालिब को दुनिया के लोग एक मशहूर शायर और उनके द्वारा लिखी गयी मशहूर शेरो शायरी के लिए ही दुनिया वाले उनको याद करते हैं न की वे समलैंगिक थे इसके लिए याद करते हैं हो सकता है किसी सिरफिरे ने उनको समलैंगिक का खिताब दे दिया हो . क्यूंकि मैं भी यह सुनी सुनाई बात लिख रहा हूँ .
३ अगर सिनेमा समलैंगिक ब्यक्तियों के अधिकारों की पैरवी कर रहा है उन्हें पहचान दिलवा रहा है तो ,यह गलत कर रहा है क्यूंकि सिनेमा एक बहुत बड़ा माध्यम है और इसके द्वारा किसी गलत ब्याव्हारों को प्रचारित करना समाज के साथ सिनेमा की गैर जिम्मेवार पैरवी कही जाएगी .अतः सिनेमा को कभी भी ऐसे बीमार मानसिकता वाले समलैंगिक लोगों की पहचान करवाना गलत कहा जायेगा .
४. समलैंगिकता को बढ़ावा विदेशी फ़िल्में तो जरुर दे रही होंगी पर हमारे यहाँ का समाज हमेशा से देश दुनिया को आदर्श और त्याग का जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले लोगों की वकालत करता आया है इस देश के ही स्वामी विवेकानंद हुए हैं जिन्होंने दुनिया में आध्यात्म की अलख जगाई जब वे सिकागो गए तब उनको बोलने का विषय शून्य दिया गया जिस पर उन्होंने एक सप्ताह तक भाषण दिया वहां के और पूरे विश्व के लोग भौंचके रह गए ..
५. भारतीय परिदृश्य के अनुसार समलैंगिक अधिकारों की मांग एकदम से नाजायज है . इसको जायज ठहराने वालों को नकारना बहुत जरुरी है .हो सकता है मेरे इस विचार से जो लोग समलैंगिक होंगे वे नाराज होंगे पर ब्याव्हारिकता का यह तकाजा है की ऐसे गलत कृत्य को नाकारा जाये इसको मान्यता कतई ना दिया जाये .

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply