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हाल ही में ११ मई को पाकिस्तान में आम चुनाव हुए जिसमें नवाज शरीफ की पार्टी पि एम् एल (एन ) को पूर्ण बाहुमत में ११ सीटें कम मिलीं लेकिन अन्य पार्टियों के सहारे नवाज शरीफ सरकार बनाने जा रहें हैं और पाकिस्तान की सत्ता की कमान एक बार फिर से नवाज शरीफ सम्हालने जा रहे हैं , उनकी पूर्व की कार्य प्रणाली ,उनकी पूर्व की प्राथमिकतायें और निर्णय क्षमता का आकलन कर क्या? इस बार सुधार की उम्मीद की जा सकती है? यह एक बड़ा ही कठीन सवाल है – हमारे पूर्व के अनुभव तो बड़े कटु हैं क्यूंकि जब पिछली बार १९९९ में नवाज शरीफ पाकिस्तान की गद्दी सम्हाले थे तब भारत ने कारगिल युध्ध का सामना किया था और नवाज शरीफ का कहना हैं उस- युध्ध के बारे में उनको कोई जानकारी नहीं थी और यह उनके सेना की कारस्तानी थी . निस्संदेह किसी देश में युध्ध की कमान सेना के हाथों में ही होती है पर जिन देशों में प्रजातंत्र की सरकार होती है उसमें सेना तो सरकार के अधीन ही होती है फिर नवाज शरीफ का यह कहना की कारगिल युद्ध की उनको कोई जानकारी ही नहीं थी कहाँ तक सही लगता है? चलो एक बार को मान भी लिया जाये उनकी बात को तो इसकी क्या गारंटी है की ऐसे किसी अप्त्याशीत युद्ध की पुनरावृति नहीं होगी के सचमुच आज क्या ? पाकिस्तानी सेना जनतंत्र की परम्पराओं को मानने के लिए तैयार है क्या ? वहां के कट्टरपंथी आतंकवादी देश में अमन चैन आये इसके लिए तैयार हैं सबसे पहले इस बात को समझना पड़ेगा और चरमपंथी अपने देश में भी हैं जो आये दिन किसी घटना को अंजाम देते हैं माओवादी, नाक्साल्वादी अपने देश में भी हैं क्या ? अपना देश इन सब गुटों पर काबू कर पाया है अतः आज हर देश ऐसी सामाजिक कठिनाईयों से जूझ रहा है अकेले पाकिस्तान की ऐसी समस्या नहीं और इसके मूल में है आर्थिक असमानता गरीबी अमीरी में बढती खायी जो लोग क्षुब्ध हैं उन्होंने हथियार का सहारा लिया है वर्तमान ब्यवस्था में वे लोग खुश नहीं हैं क्यूंकि जो लोग सत्ता में बैठे हैं वे जनता से कटे रह रहे हैं केवल जनता के पैसों पर सत्ता सुख भोगना ही उनका काम है अब देखना है पाकिस्तान के नवाज शरीफ अपने देश की जनता के बीच कैसे नेता साबित होते है हर हाल में उनकी पहली प्राथमिकता पाकिस्तान में अमन चैन की बहाली कैसे हो इसके लिए काम करना उनके लिए जरुरी है फिर पडोसी मुल्क की बात आती है अतः अभी किसी तरह की उम्मीद करना जल्दबाजी होगी .
चुकी नवाज शरीफ पहले भी पाकिस्तान में प्रधानमंत्री रह चुके हैं अतः उनके पी एम् बन जाने के बाद दोनों देश के सम्बन्ध तुरंत से प्रभावित होने लगेंगे ऐसा कुछ मुझे नहीं दिखाई देता पिछले अनुभव बताते हैं की पाकिस्तान में आई एस आई ,पाकिस्तानी फ़ौज और कट्टरपंथी समुदाय कभी नहीं चाहेगा की दोनों देशों में अमन चैन का माहौल बने और यही सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान में नवाज शरीफ को है अगर वे इन तीनो को कुछ समझा पाए उनको संतुष्ट कर पाए ऐसा विश्वास दिला पाए की मार काट और हिंसा से कुछ हासिल नहीं होने वाला इन सब बातों से मुल्क की आर्थिक तरक्की नहीं होगी जब भी तरक्की होगी आपसी मेल मिलाप से होगी आपसी बात चीत से होगी जब तक दोनों देशों में तनाव रहेगा संबंधों में सुधार की आशा बेमानी है .
भारतीय प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भारत आने का न्योता दे चुके हैं क्या भारतीय मंत्री की यह पहल हमेशा की तरह हमारे लिए तो घातक सिध्द नहीं होंगी ?
अब इस सवाल में ही इसका जवाब छुपा है जब हमारे पिछले अनुभव कटु रहे हैं और पाकिस्तान ने हमेशा दोस्ती का हाथ बढाकर पीठ में छुरा घोंपा है फिर यह कैसे सुनिश्चित किया जाये की पाकिस्तान इस बार भी ऐसा कोई धोखा नहीं देगा अतः विश्वास तो पाकिस्तान को जीतना होगा भारत का इस प्रक्रिया में नवाज शरीफ क्या कुछ करते हैं यह देखना है और यह सब समय ही बताएगा आज की तारिख में ऐसी कोई भविष्यवाणी करना संभव नहीं पिछले अनुभव हमें यही बताते हैं
क्या पाकिस्तान में कट्टरपंथी गुट क्या पडोसी देशों के साथ सम्बन्ध सुधार की कोशिशों को सफल होने देंगे ?
कतई नहीं! कट्टरपंथी चाहे कसी मुल्क के हों उनकी लडाई हमेशा से वर्तमान ब्यवस्था से है हाँ अगर किसी भी देश की ब्यवस्था उन असंतुष्ट लोगों की मांगो को मान लेंगे या उनके साथ बैठक करके उनको समझाने में सफल हो जायेंगे तो यह समस्या समाप्त हो सकती है देश कोई भी हो पाकिस्तान या भारत असंतुष्टों की एक जमात है जो हर देश में ब्यवस्था के खिलाग्फ़ हथियार उठाये हैं और कत्ले आम करना ही उनका मकसद है ताकि अशांति बनी रहे और भारत में भी इन मिसाईलों को सुलझाने में इक्षा शक्ति की कमी रही है कूटनीतिक सोंच में कमी है और जब तक वे अलग थलग रहेंगे यु ही निर्दोष लोगों की हत्या करते रहेंगे वह देश चाहे भारत हो या पाकिस्तान अतः कट्टर पंथी गुट ऐसी किसी भी कोशिस को कामयाब नहीं होने देंगे ..
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