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क्या हैदराबाद आतंकी हमला भारत की पक्षपात भरी नीति का परिणाम है ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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हैदराबाद में आतंकियों द्वारा किया गया हमला हमारे देश को आतंकियोंद्वारा दी जाने वाली खुली चुनौती है, इसमें अपने देश की किसी नीति का परिणाम नहीं कहा जा सकता और ये आतंकी वर्षों से हमें ऐसी चुनौतियां देते आ रहे हैं और ऐसे हमले में या तो अपनी सुरक्षा एजेंसी के लोग मारे जाते हैं या यहाँ का आम आदमी और आज अपने देश के नेताओं को इस देश की आम जनता की कोई परवाह है ही नहीं आज ये नेता जनता को ही खुली चुनौती दे रहे हैं की तुम जितना मर्जी शोर मचाओ यु हीं भेड़- बकरियों की तरह काटे जाते रहोगे मारे जाते रहोगे और हम(नेता) अपना समय पूरा करके ही गद्दी से हटेंगे.
अब प्रश्न है की अजमल कसाब को फांसी दी गयी कितने सालों के बाद इसको देखना होगा और उस आतंकी का क्या कसूर था इसको भी देखना होगा फिर विचार करना होगा क्यूँ फांसी दी गयी? और देरी से क्यूँ दी गयी .मैं कहता हूँ इस फांसी में देरी ही आतंकियों के मनसूबे को बढाता है और अपना देश इनके आगे घुटने टेकता दिखाई दे रहा है यहाँ यह डर है जबकि एक आतंकी जिसने हमारे देश के कितने बेगुनाह लोगों का क़त्ल कर दिया उसको ये वर्षों पालते रहे यहाँ तक की फांसी की सजा सुनाने के बाद भी उसको कई सालों तक फांसी नहीं दी गयी और आज इस देश में फांसी देनी चाहिए या नहीं ? इस बात पर टेलीविजन पर चर्चा हो रही है यहाँ क्यूँ नहीं सुप्रीम कोर्ट को निर्देश दे दिया जाता, की वे फांसी की सजा सुना ही नहीं सकते बस ! और इस देश के नेताओं (आकाओं ) का क्या कहना ? अफजल गुरु जो हमारे देश के पार्लियामेंट जिसे हमारे नेता लोकतंत्र का मंदिर कहते नहीं थकते और जब आतंकी हमला हुवा तो इसमें ये सारे नेता ही बैठे थे और कुछ सुरक्षा कर्मी एवं कुछ और लोग जिनकी ड्यूटी वहां थी वही थे न ! इसके बावजूद ये नेता ये मंत्री उस अफजल गुरु की फांसी की सजा को कैसे कम कर दी जाये पहले तो ऐसा करते रहे फिर जब इतनी देर बाद फांसी दे दी गयी तब डरते रहे इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी और हैदराबाद हमले को ये प्रतिक्रिया स्वरूप हमला समझ रहे हैं नेताओं के मुख से ऐसा सुनने के बाद क्यों नहीं? इन आतंकियों का हौसला बढेगा सोचना यह है की आतंकी कितनी संख्या में हैं और हमारे देश की सुरक्षा सेवा में कितनी पुलिस कितनी फ़ौज है , यह सब होते हुए हम बार बार अपने देशवासियों की हत्या उन आतंकवादियों से करवा रहे हैं यह किसके साथ पक्षपात हो रहा है यह तो नेता ही जाने अब जब ये अपना हित भी नहीं देख रहे, सत्ता की ऐसी ललक है इनको की चाहे जनता पर जितने जुल्म हो ये हर पांच साल बाद चुनाव करवा के गद्दी पर आसीन होना और सत्ता सुख भोगना ही एक मात्र मकसद समझते हैं और ये नेता चुनाव डर चुनाव हर बार अपने इस नापाक मनसूबे में कामयाब भी हो जा रहे हैं ऐसे में इनका मकसद किसी कड़े कदम उठाने का कैसे हो सकता है? आज देश की दोनों राजनितिक पार्टियां किसी न किसी तरीके से मुस्लिम तुष्टिकरण में लगी हैं उनकी हर जायज या नाजायज मांगो को पूरा करने के परयास में हैं बेशक उनके इस कारनामे से बहुसंख्यक हिन्दू का खस्ताहाल होता रहे और इसीको धर्मनिरपेक्षता का नाम दे रहे हैं ये पार्टियाँ बीजेपी को छोड़कर सभी अपने को ऐसा ही धर्मनिरपेक्ष बता रहे हैं
अफजल गुरु की फांसी बिबद्स्पद मसला किसके लिए है सरकार के लिए या जनता के लिए पहले इसको सोचना है फिर इन हमलो को उससे जोड़ना या नहीं जोड़ना इस पर तर्क करने की जरुअरत पड़ेगी यहाँ तो केंद्र की सरकार ऐसे बयां दे रही है की उनको खुफिया जानकारी मिल चुकी थी की आतंकी कोई बड़ा वारदात करने वाले हैं फिर भी वे ऐसा कर पाए अब सरकार सुरक्षा एजेंसी इनको सोचना है की ऐसी सूचनाओं का क्या लाभ ये ले रहे हैं और इन सब के बावजूद ऐसी न्र्मम हत्यायों को ये आतंकी अंजाम दे रहे है यह हमरी सुरक्षा के मुख पर एक तगड़ा तमाचा है .
इसमें संदेह नहीं ऐसे हमलो के लिए हमरे देश के नेताओं की देश की जनता के प्रति दुर्भावना पूर्ण निति का परिणाम है और पक्षपात तो ये पार्टियाँ कर कर ही रही हैं कभी आरक्षण के नाम पर कभी अल्पसंख्यक समुदाय के नाम पर समाज को बाँट रहे हैं ये नेता हासिल क्चुह्ह जनता को तो होना नहीं हाँ नेता अपनी राजनितिक रोटियाँ जरुर सकते रहेंगे “बांटो और राज करो ” और जनता में आक्रोश बिलकुल नहीं अगर ऐसा होता तो वह चुनाव के समय दिखलाई पड़ता
सुरक्षा तंत्र अपने देश का केवल नेताओं की सुरक्षा में लगा हुवा है इसलिए इन हमलों में कभी कोई नेता नहीं मार जाता अगर कोई मार जाता है तो सुर्काक्षा कर्मी या आम जनता चाहे नाक्सालों का हमला हो या आतंकियों का हमला मरना जनता ने है अभी हाल में आंकड़े आये थे एक नेता के सुरक्षा में टी पुलिस और जनता के हिस्से में कितनी पुलिस यह तो सबको पता ही है अतः यहाँ सुरक्षा केवल नेताओं को चाहिए बाकि लोग इन नेताओं को ही सुरक्षा देंगे अपनी जान गवांकर भी
अतः सुरक्षा बलों कॉ दोषी ठहराना जायज नहीं उनको अगर आशंका हो भी तो क्यों कोई सावधानी नहीं बरती गयी ऐसा कहना भी सही नहीं जरुर उनका इस्तेमाल कही और हो रहा होगा तभी वे अपनी ओर से कोई कारवाई समय रहते नहीं कर पाए और अगर सचमुच उनकी सावधानी में ऐसी कोई खामी पाई गयी है तो सुरक्षा तंत्र भी सजा का हकदार है क्यूंकि इन मासूमों की हत्या में ये भी उतने ही दोषी कहे जायेंगे

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