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हड़ताल से किसको क्या हासिल ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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अभी पिछले दिनों सभी श्रमिक संगठनों के आह्वान पर दो दिनों की देशब्यापी हड़ताल हुयी और इसका असर दिल्ली ,पश्चीम बंगाल ,पंजाब ,हरियाणा सहित देश के अन्य भागों में भी इस हड़ताल के ब्यापक प्रभाव की खबर अख़बारों में भी छपी और इसके चलते आम जन – जीवन अस्त ब्यस्त भी हुवा आम लोगों को काफी परेशानी का भी सामना करना पड़ा सरकारी एवं निजी सम्पतियों का नुकसान भी हुवा और इस पर नेताओं एवं प्रशासन के बयान भी आये पर इस तथ्य का पता नहीं चल सका की जब इस हड़ताल की जानकारी नेताओं मंत्रियों प्रशासन जुड़े अधिकारीयों सबको रहने के बावजूद आगजनी जैसी घटनाओं पर काबू नहीं पाया जा सका मतलब साफ़ है इस बार सरकार एवं सरकारी अमला जनता को दोषी ठहराने की जुगत में था क्यूंकि इस हड़ताल में केंद्र में जिस पार्टी की सरकार है उनका संगठन (एटक) भी शामिल था फिर भी सरकार ने यह सब होने दिया इस बात का सबको पता है की जब भी कोई हड़ताल इस देश का श्रमिक वर्ग करता है तो उसमें कुछ गुंडा तत्व शामिल हो जाते हैं और वे लोग ही ऐसी वारदातों को अंजाम देते हैं और बदनामी हड़तालियों की होती है श्रमिकों के पास हड़ताल हीं एक मात्र साधन है अपनी मांगों को मनवाने का और मांगे नहीं मानने पर हड़ताल जैसे विरोध प्रदर्शन करने का जब ये सरकार इतनी निर्मम इतनी तंगदिल हो गयी है की जब जब इस देश की गरीब जनता महंगाई के विरुद्ध आवाज उठती है तब तब सरकार महंगाई को और बढ़ा देती है और यह कहती है इस महंगाई को रोकने का कोई उपाय उसके पास नहीं है और संसाधनों का रोना रोती है जबकि सारे संसाधनों को ये नेता एवं मंत्री घोटालों के हवाले करते जा रहे हैं और अपना टाइम पूरा कर रहें हैं और ऐसी विषम अवस्था में इनको सहयोग देने वाले भी मिल गए हैं आज यह पता लगाना मुश्कील हो रहा है इस देश की कौन सी पार्टी जनता के दुखों से कोई सरोकार रखती है और हाय री, इस देश की जनता इतना सब कुछ सहने के बाद इन्हीं नेताओं इन्ही पार्टियों को फिर से चुन लेती है, और इसको अपने लोकतंत्र की बिडम्बना ही कहेंगे सरकार के एक मंत्री जरुर यह कहते सुनाई दिए की इन शरमिकों की कुछ मांगों को पूरा करने की कोशिस करेंगे यह ध्यान देने की बात इन्होने कोशिस शब्द का इस्तेमाल किया है कोई गारंटी नहीं ली है अब लोकसभा में अपने देश का सालाना बजट सामने आ रहा है कुछ लोक लुभावने सपने दिखायेंगे क्यूंकि ऐसे सपनों को पूरा करने की जिम्मेवारी तो कभी वे लेते नहीं और नहीं पूरा करने के अनुपस्थिति में उनको कोई सरकार में बने रहने से रोक नहीं सकता क्यूंकि अपना संविधान यही कहता है यहाँ तक की अपना चुनाव आयोग भी यही कहता है की , ये सांसद जनता द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधि हैं अब वे जैसा उचित समझे कर सकते हैं जनता चाहे मर्जी जितना विरोध कर ले क्यूंकि इस देश की जनता ने एक बहुत बड़े विरोध को करके देख लिया सरकार का क्या बिगड़ा? लोग जंतर मंतर पर लाखों की संख्या में धरना प्रदर्शन करते रहे जिसकी शुरुआत अन्ना हजारे जैसे समाजसेवी ने की थी क्या हुवा ? अन्ना टीम ही टूट गयी अब केजरीवाल नयी पार्टी “आप” पार्टी लेकर आये हैं क्या इस देश की निराश जनता अपनी भीड़ को अपने वोट में तब्दील कर पायेगी अरविन्द केजरीवाल की आप पार्टी का भरोसा करके क्या उनकी पार्टी को वोट देगी ताकि जनहित की सरकार इस देश में बन सके पर ऐसा होना नामुमकिन नहीं तो संभव भी नहीं लगता क्यूंकि आज सत्ता में काबिज कांग्रेस ने ऐसा दिखा दिया है की चाहे जितना मर्जी विरोध कर लो हड़ताल कर लो तोड़ फोड़ कर लो ना वे भ्रष्ट अधिकारीयों एवं मंत्रियों को हटायेंगे न ही घोटालों को बंद करेंगे बल्कि २०१४ आते आते और कई घोटाले करेंगे और उसके और उनके खुलासे के बाद कोई जाँच बिठा देंगे चाहे जे पि सी बिठा देंगे अगर बिपक्छी ऐसी मांग करेंगे वैसा कर देंगे क्यूंकि बिपक्छियों को भी पता है आज तक जितनी जे पि सी जाँच हुयी है उसका कोई नतीजा नहीं निकला है और यही बात कांग्रेस पार्टी भी जान रही है अतः अब ये सारे नेता ये सारी पार्टियाँ अपना फाईनल गेम खेल रही हैं और जितना लूटना है लूट रही हैं और लूटती ही रहेंगी क्यूंकि २०१४ के पहले कोई लोकसभा चुनाव यहाँ होना नहीं है और इस देश की जनता ने तब तक सब कुछ भूल जाना है जैसा कई कांग्रेसी नेताओं का कहना है इस बीच झूठे दिलासों देते रहेंगे , कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा कर देंगे बस जनता फिर से नयी उम्मीद के साथ चुप बैठ जाएगी देश चलता रहेगा और आखिर ये नेता क्यूँ ना ऐसा सोंचे?क्यूंकि महंगाई के बाद भी कौन सी वस्तुओं की खपत कम हुयी है कौन सा ब्यापार प्रभावित हुवा है जब तेल(पेट्रोल एवं डीजल ) महंगा होता है तो पेट्रोल पम्प पर लम्बी लाईने लग जाती हैं और अगर टेलीविजन वाले उस पर जनता से बयान लेने आते हैं तो लोग कहते हुए सुने जाते हैं पेट्रोल तो हमें खरीदना ही होगा भले एक रोटी कम खा लेंगे और ऐसे में जब सरकार जनता के मुख से ऐसे बयान सुनती है फिर वह क्यूँ पेट्रोल को सस्ता करे और जब लोग एक रोटी कम खाकर गुजारा कर लेने को तैयार हैं फिर सरकार को क्यूँ कोई तकलीफ होगी? इन सब बातों से यही निष्कर्ष निकलता है की हड़ताल भी एकमात्र दिखावा था और राजनितिक था और यह देश की जनता को सरकार की तरफ से एक खुली चुनौती है कर लो जितनी मर्जी हड़ताल कर लो जितनी मर्जी धरना प्रदर्शन एवं आन्दोलन देश तो ऐसे ही चलता है और इसको हम (नेता लोग ) ऐसे ही चलाएंगे
मैंने अपने विचार लिख दिए, अब देखना है जनता ,मिडिया ,एवं नेताओं की क्या प्रतिक्रिया है

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