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अक्सर अपने देश भारतवर्ष में यह मुख्य चर्चा का विषय रहता है की विकास तो बहुत हो रहा है लेकिन हमारी बढती जनसँख्या हमारी बढती आबादी उन विकास कार्यों का लाभ जन जन तक नहीं पहुचने दे रही है , पर मैं श्री श्री रवि शंकर जी के बक्ताब्यों से सहमत हूँ की हमारी आबादी ही हमारे लिए वरदान है बस अगर कमी है तो उस बढती आबादी को दिशा देने की, कमाऊ हाथों को रोजगार देने की और रोजगार भी उपलब्ध है पर हमारे देश के नेताओं की नीतियाँ दोष पूर्ण है और ये नीतियाँ जन विरोधी भी हैं इसके कई उदाहरण हैं:- .
१. हमारे देश के नेताओं के ब्यक्तिगत सुरक्षा पर धन की बर्बादी उनके ठाट बात और सैर सपाटे में देश के धन की बर्बादी
२.किसी विभाग में जब नौकरियों के लिए भरती होनी है उसमें पारदर्शिता की कमी का होना भाई- भतीजावाद के आधार पर भरती और उसमें भी भारी घूसखोरी
३ जो हाथ कमाऊ हैं उनको काम नहीं देने की निति यहाँ तक की जो लोग खेतिहर हैं उनको जरुरी सुविधा नहीं मुहैयिया कराना जैसे सिचाई ,बीज ,खाद जो किसान उत्पादन करने वाला है उसीके प्रति इस तरह की गलत निति का होना
४ आज अपने देश में किसान सबसे ज्यादा त्रस्त है और आत्महत्या के लिए मजबूर है क्यूँ ? इतनी गंभीर समस्या के प्रति कोई समाधान का नहीं होना यह जानते हुए की अपने देश की ६० प्रतिशत आबादी अभी भी खेती पर निर्भर है
और इसकी जानकारी देश की सरकार को है फिर सरकार आँख मूंदे है और ऐसे में आबादी का रोना, रोकर अपनी जिम्मेवारियों से पल्ला झाड़ना ही कहा जायेगा
५ केवल कागजों पर सिक्षा का अधिकार घोषित कर देना और देश में नर्सरी में भी बच्चों के दाखिले का नहीं होना क्या इसको सिक्षा का अधिकार कहेंगे ?
६.खाद्य सुरक्षा मुहयिया कराने की बात करना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियों को जानते हुए भी उसको सुधारने के लिए कुछ नहीं करना और दुःख तो इस बात का की अनाज देश में खुले में रखने से लाखो टन अनाज का सालों से सड़ते रहना और सरकार की तरफ से यह कह देना, इसको वे गरीब जनता में बाँट नहीं सकते ऐसी असमर्थता जताना क्या यह निति जनहित में कही जाएगी?
ऊपर बताये गए तथ्यों में अगर कुछ अनुचित लगता है तो सरकार जनता को बताये लेकिन झूठ मूठ का कमाऊ हाथों को यूँ बोझ न बताये और सरकार द्वारा हर उठाया जाने वाला कदम केवल चुनाव को मद्दे नजर रखकर हीं उठाये जाना यहाँ तक की जिन प्रदेशों में केंद्र में बैठी पार्टी का सरकार नहीं होने पर भेद भाव करना जैसे वहां की जनता इस देश की नागरिक न हो और उनके प्रति सरकार की कोई जवाबदेही न हो ऐसी मानसिकता को बदलना क्यूंकि यह संविधान के बिपरीत ब्यवहार कहलायेगा अतः सच मायनो में आबादी वरदान है अभिशाप नहीं कमी है तो वैचारिक एवं सिधान्तीक और कुछ नहीं
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