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वित्त मंत्री ने देश को बुध्धिमानी से चलने की बात कही और विकास के मुद्दे पर धन का आभाव प्रमुख कारन बताया

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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वित्त मंत्री के विचार से सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भ पैसा है जो सीधे देश की विकास दर से जुड़ा है और इसके लिए जिम्मेवार उन्होंने टैक्स राजस्व को ठहराया है उनका कहना है “जिस गति से राजस्व गिरता है उसी गति से खर्च में कटौती नहीं की जा सकती .नतीजतन राजस्व और खर्च में अंतर बढ़ जाता है और राजस्व घाटा भी बढ़ जाता है .
इस विषय में दो बातें कहना चाहूँगा – पहला यह की अगर पैसा देश में घट गया है तो जो पैसा विदेश के स्विस बैंक में पड़ा है वह तो देश के लोगों का है खासकर नेताओं, एवं उद्योगपतियों का हीं टैक्स चोरी का पैसा है क्या ऐसे वित्तीय संकट के वक्त भी सरकार उन पैसों को वापस लाने की बात नहीं सोचेगी और यूँ धन की कमी का रोना रोकर विकास कार्यों को रोककर रखेगी क्या ? इस सरकार और कांग्रेस के लिए ऊपर से कुबेर पैसा लेकर थैले में आयेंगे और कहेंगे बच्चे यह पैसा लो और देश का काम करो यह कैसी नासमझी वाला बयान ये सरकार देश की जनता को सुना रही है फिर इसकी विश्वसनीयता क्या है? क्यूँ सत्ता पर बैठी है इसका जवाब देश की जनता मांगती है वित्त मंत्री को एक और लेख लिखकर इसका खुलासा भी करना चाहिए .
दूसरी बात है टैक्स और राजस्व की आज देश में टैक्स कौन वसूलता है, इनकम टैक्स अधिकारी हीं न और वह अधिकारी सरकार के अधीन ही कार्यरत है तथा वह किनसे टैक्स वसूलता है और किसको टैक्स माफ़ करता है इसकी जानकारी भी सरकार को है फिर वित्त मंत्री का यह बयान किसको जवाबदेह कह रहा है? और किस खर्चे की कटौती की तरफ इनका इशारा है, सबसे पहले नेताओं को सैर सपाटे की छूट जो मिली है उस पर पाबन्दी लगायें उनकी सुविधाओं को कमतर करने का प्रयास सरकार द्वारा किया जाये उनकी सुरक्षा में इतना सारा देश का धन खर्च किया जा रहा है क्यूँ? इन नेताओं की जान सबसे बेशकीमती है, और आम जनता हर वक्त यूँ असुरक्षित है खासकर महिलाएं, क्या नेताओं की सुरक्षा पर खर्च होनेवाले धन की कटौती कैसे की जाये और क्यूँ ना की जाये इसकी तरफ वित्त मंत्री का ध्यान है क्यूँ सरकार धन की कमी की पूर्ती के लिए ऊपर सुझाये गए उपायों पर विचार नहीं करती और उनको लागु नहीं करती इससे साफ़ दिखलाई पड़ता है यह सरकार अपनी जिम्मेवारियों से पल्ला झाड रही है और चुनाव जब नजदीक आया तब कौन प्रधान मंत्री बनेगा इस पर जनता का ध्यान भटका रही है क्यूँ इनके युवराज कोई सुझाव नहीं देते सरकार को? कम से कम बाकि के १४ महीने में इन सुधारों को लागु कर जनता का विश्वास जीते अगर ये जनता का विश्वास जीतेंगे तो निश्चीत है की फिर से इनकी सरकार बनेगी क्यूंकि इनकी पार्टी पी एम् पद के लिए उम्मीदवार दस बीस नहीं एक है वह हैं राहुल गाँधी और जहाँ तक बिपक्षी पार्टी बीजेपी सवाल है तो उस पार्टी में तो दसियों पी एम् उम्मीदवार बैठे हैं जिनके मन में लड्डू फुट रहा है क्यूँ नहीं, उनका नाम पी एम् के लिए आगे बढाया जाता और बढती महंगाई,भ्रष्टाचार ,कला धन जो विदेशी बैंक में रखा है , महिलाओं की सुरक्षा, न्याय मिलने में देरी और अनेकों जन समस्यायों के समाधान की ओर किसी नेता या पार्टी का ध्यान क्यों नहीं जाता कब तक ये नेता केवल जनता में फुट डालकर राज करने की निति अपनाते रहेंगे और देश को कमजोर करते रहेंगे

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