Menu
blogid : 8115 postid : 91

वर्तमान गठबन्धनों में टूट -फूट और तीसरे मोर्चे के गठन की सम्भावना पर क्या आपकी राय ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
  • 166 Posts
  • 493 Comments

गठबन्धनों में टूट- फूट तो राष्ट्रपति चुनाव के समय से हीं देखा जा रहा है और आज राजनीती में कोई गठबंधन धर्म नहीं कोई सिधांत नहीं केवल मौका परस्ती देखने को मिल रही है क्यूंकि सभी राजनीतिक दल एवं उन दलों के मुखिया चाहे वे छेत्रिय पार्टी के हों, या राष्ट्रिय पार्टी के हों, वे बड़े ही महत्वाकान्छी नजर आ रहे हैं और उनकी महत्वकांछा एक है, और वह है कैसे? वे! पी एम् की कुर्सी पर आसीन हो सकते हैं? केवल और केवल आज की राजनीती में यही है इसमें जनता का काम, देश- सेवा, जनहित, जनकल्याण का कही नामो निशान नहीं है क्या इसीको लोकतंत्र कहते हैं? क्या हमें अंग्रेजों से इसके लिए आजादी मिली थी ? आज यह सबसे ज्वलंत प्रश्न इन पार्टी नेताओं से इस देश की जनता चीख -चीख कर पूछ रही है और इसके लिए पिछले दिनों आन्दोलन भी हुवा और वह आन्दोलन भी मतभेदों की भेंट चढ़ गया क्यूंकि उस आन्दोलन में जो मुखिया थे मेरा मतलब अन्ना हजारे से नहीं बल्कि उनके प्रमुख कार्यकर्ता श्री अरविन्द केजरीवाल से है वे भी कम महत्वाकान्छी नहीं हैं .
जहाँ तक नए राजनैतिक समीकरणों की सम्भावना का प्रश्न है वह तो होता दिखाई दे रहा है क्यूंकि आज घटक दलों में भी विचारों का भयकर मतभेद है यहाँ तक की मुख्य सत्ता पक्छ और विपक्छी बीजेपी पार्टी के लोग भी किसी एक मसले पर भिन्न भिन्न तरह के राय रखते हैं कोई कहता है मनमोहन सिंह कभी ऍफ़ डी आई के विरोध में थे कोई कह रहा है बीजेपी अपने समय में ऍफ़ डीआयी के समर्थन में थी इस तरह के नेताओं के बयान से ऐसा प्रतीत होता है की २०१४ में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले राष्ट्रिय पार्टियों में काफी फेर फदल एवं टूट -फूट होंगे दल बदल होंगे और राजनीती की नयी सूरत देश को देखने को मिल सकता है इसकी प्रबल सम्भावना है ऐसा मेरा विचार है और एन डी ये या यु पी ए के बदले कोई नया नाम भी देश को देखने में आ सकता है
देश की राजनीति में तीसरे मोर्चे की सम्भावना मेरी राय में बिलकुल नहीं दिखाई दे रही है क्यूंकि जो पार्टियाँ एक साथ आने का दम भर रहीं है जिसमे टी एम् सी ,सपा ,बसपा एवं बामपंथी पार्टियाँ चर्चा में हैं उनमे नेत्रित्व का संकट है मुलायम सिंह यादव पी एम् की कुर्सी पर नजर गडाए हुए हैं क्या इनको ए पार्टियाँ उस योग्य समझती हैं वे बेहतर सी एम् तो बने नहीं, पी एम् का ख्वाब किस बिना पर देख रहें हैं यह हमारे देश की राजनीत का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा जो मुलायम सिंह जिस पार्टी के अगुवा हैं और जिनकी पार्टी को गुंडों की पार्टी उत्तर प्रदेश की जनता एवं नेता भी कहते थे उनको उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत मिल गया और वे अपनी इसी जीत को देखते हुए अपने को पी एम् की कुर्सी का हक़दार समझने लगे आज यूपी में कानून ब्यवस्था का क्या हाल है? यह जग जहीर है , जनता को किये गए वैयदे अखिलेश ने जो आज सी एम् हैं कितने वैयदे जनता को पूरे होते दिखाई दे रहें हैं अरे ! नेता जी मुलायम सिंह तो सोनिया की तरफ देख रहें है अपने प्रदेश के आर्थीक पॅकेज के लिए और इसीलिए इस भ्रष्ट सरकार का समर्थन कर रहें क्यूंकि उन पर भी आय से अधीक सम्पति वाला मुकदमा और सीबी आई जाँच का केश फिर चालू न हो जाये इसलिए कांग्रेस का समर्थन भी कर रहें हैं यहाँ कोई राजनीती कोई आदर्श कोई सिद्धांत नजर आ रहा है सारा देश क्या इन बातों को समझ नहीं रहा जो ए नेता अपने को कानून की गिरफ्त से बचाए रखने के लिए कर रहें हैं ? हाँ इन सबों में ममता जरुर एक आदर्श एवं इमानदार छबि की नेता हैं अगर यह देश उनको देश का नया अगुआ मान ले तो जरुर कुछ जनहित कार्य होंगे कम से कम ममता एक इमानदार नेता जो जरुर जो आज की तारिख में ऐसा कोई नेता नहीं दिखाई देता और होगा भी तो कहीं अँधेरी गली में पड़ा होगा क्यूंकि चोरों की बरात में ऐसों का क्या काम? और यह तीसरा मोर्चा जिसकी बन्ने की सम्भावना धूमिल है ममता को अपना नेता मानेगा नहीं
आज कोई ऐसा दिन नहीं जो देश कि जनता को एक नए घोटाले का पर्दाफाश नहीं सुनने को मिलता आखीर इन नेताओं ने कितना देश को लूटा है? और कितना और लूटना चाहते हैं ? उसका अंदाजा भी अब नहीं लगाया जा सकता क्यूंकि हर दूसरा घोटाला कई लाख करोड़ का निकलके सामने आता है फिर सीबी आयी को जाँच का आदेश तब दिया जाता है जब पूरी तरह हो हल्ला मचता है और भ्रष्टाचार तो ऐसा हावी है की लगता है घोटालों का कोई विश्व रिकार्ड ए हमारे मंत्री एवं नेता बनाना चाहते हैं
आज देश में इतनी महंगाई है , देश की गरीब जनता झेलने को मजबूर है और इस देश के नेता जनता को एफडी आयी आये इसकी लिए लडाई कर रहें हैं अरे जनता को क्या मतलब या तो कुछ देश में लाने के पहले जनता को उसके फैदे को पूर्ण रूप से समझाएं टेलीविजन के माध्यम से चर्चा कराएँ फिर जनता भी इसके खिलाफ नहीं बोलेगी अभी तो यह जनता की लडाई न होकर नेताओं की लडाई दीख रही है अगर कोई काम जनता के फैदे के लिए हो रहा है तो जनता भी उसका समर्थन करेगी फिर नेताओं के विरोध से कुछ नहीं होगा पर यहाँ तो फैसले नेता अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए करते रहे हैं तभी ७० हजार करोड़ खर्च होने के बाद भी महाराष्ट्र में एक इंच जमीन की सिंचाई की ब्यवस्था वहां की सरकार नहीं कर पायी अतः एफडी आयी आये या जाये इससे जनता को क्या मतलब?
अगर उसको रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली वस्तुएं सस्ते दामों पर कोई सरकार या नेता दिला सकता है उसको हीं इस देश की जनता नेता स्वीकार कर सकती है बाकि तो सब राजनीतिबाजों का खेल है अतः तीसरा मोर्चा नहीं बनने वाला नाहीं किसी एक पार्टी का बहुमत आनेवाला है, अगले चुनाव में और बदतर राजनीतिक स्थिति हो सकती है और सरकार कौन बनाये? कैसे बनाये? किसके साथ मिलकर बनाये ? वाली स्थिति आने की ज्यादा सम्भावना है
अब सवाल है क्या घटक दलों का बिखराव का संकेत जो की प्रतायाक्छ दिखाई पड़ रहा है सिर्फ दिखावा है इस बात को मैं नहीं मानता यह दिखावा नहीं सच्चाई है क्यूंकि पार्टियों में अंदरूनी लोकतंत्र नहीं है विचारों का भयकर मतभेद है और पार्टी के अन्दर अलग अलग गुट बने हुए हैं वर्ना बीजेपी के अरुण शौरी ऍफ़ डी आयी के समर्थन में नहीं बोलते ? जब की उनकी पार्टी इसका विरोध कर रही है के इससे नहीं लगता कुछ बीजेपी छोड़ कांग्रेस में और उसी तरह कुछ नेता कांग्रेस के जो राहुल को अगल पी एम् नहीं मानने को तैयार हैं मगर बोलते नहीं हैं वे भी टूट कर बीजे पी या किसी एनी दल जिनका अपने प्रदेश में शासन है उसके साथ भी जुड़ सकते हैं अतः ऐसा कहना की यह एक मात्र दिखावा है यह सही नहीं और ऐसा दल बदल देखने को मिलेगा अगले चुनाव के पहले .
इन सब बातों के खुलासे के लिए अगले चुनाव का इन्तेजार नहीं करना होगा यह जल्द होगा और मेरी राय में १० अक्टूबर के पहले होगा . अभी तो इण्डिया अगेंस्ट करप्शन के अरविन्द केजरीवाल भी नयी पार्टी बनाने जा रहें हैं क्या पता कुछ नेता उनके साथ भी जुड़ें . इसकी सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता .लोकतंत्र में हमेशा बदलाव की सम्भावना रही है और यह सिलसिला ८० के दसक से हीं देखने को मिल रहा है अतः २०१४ के पहले भी आम चुनाव हो सकता है इसकी भी सम्भावना देश देख रहा है और कम से कम मेरी तो यही राय है .

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply