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महिलाओं के जीवन का दर्दनाक अंत : दोषी कौन अति महत्वाकान्छा या पुरुष प्रधान रवैया

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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किसी का महत्वाकान्छी होना चाहे वह पुरुष हो या महिला और अपने भविष्य को सुधारने सवारने के लिए महत्वाकान्छी होने की इच्छा रखना कहीं से गलत नहीं, हाँ इन सब के लिए चरित्र को दाव पर लगाना हमेशा से गलत प्रविर्ति कही जाएगी आजकल शिक्छां संस्थानों में भी महत्व्कंछा जैसे गुणों का तो गुणगान होता है पर चरित्र जैसे महानतम सिक्छां को दर किनार कर दिया जाता है आज की सिक्छा हीं दोषपूर्ण है अतः हमें सबसे पहले जीवन के इस पहलु पर प्राथमिकता देनी होगी अगर हमारा चरित्र ठीक होगा तो वह हमारे द्वारा किये गए कार्यों में भी परिलाक्छित होगा अतः मैं नहीं मानता की महिलाओं का अपने भविष्य को सुधारने के लिए महत्वाकान्छी होना उनके चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगता है क्यूंकि हर महत्वाकान्छी महिला चरित्रहीन नहीं होती आज यह बात पूरे तौर पर साबित हो चुकी है हाँ जो महिलाएं अपने चरित्र को दाव पर लगाकर अपनी महत्वकंछा को पूर्ण करने की सोचती हैं उनके साथ तो अत्याचार या दुराचार होना बहुत हद तक संभव है हीं क्यूंकि अपना देश भले महिलाओं को समान अवसर देने की बात करता है पर समान न्याय देने की बात नहीं करता वर्ना जो महिलाओं के साथ हादसे हो रहे हैं अगर हमारे न्यायालय उन पीड़ित महिलाओं को न्याय दिला पाते तो ये बढ़ता अपराध, खासकर महिलाओं के प्रति उसमे जरुर कमी आती इसलिए जीवन में कुछ पाने के लिए कभी भी अपने चरित्र को दाव पर कोई महिला न लगाये .
दूसरी बात किसी महिला का पुरुष से प्रेम करना, या उस पुरुष पर विश्वास करना कहीं से गलत नहीं पर विश्वास का भी कोई मापदंड है पहले तो यह जानकारी होनी चाहिए की कोई महिला क्या इसलिए हीं उस पुरुष पर विश्वास करने लगाती है की वह उसको पहली नजर में ही अच्छा लगने लगा उसके ब्यक्तित्व के किसी पहलु को देखा परखा जांचा क्यूंकि महिलाओं का दिल बहुत भोला होता है और यही भोलापन उनको किसी विश्वासघाती पर ही विश्वास कर लेने को प्रोत्साहित करता है और आजकल कहा जाने लगा है विश्वास का जमाना अब नहीं रहा क्यूंकि आजकल बहुत लोग चाहे वो महिला हो या पुरुष विश्वासघात के शिकार हो रहें हैं अब करीबी रिश्तेदार भी विश्वास के काबिल नहीं रहे यह भौतिकवाद के देन है लोग वस्तु से प्रेम करते हैं महिलाएं भी उनकी नजर में एक वस्तु ही हैं जो उपभोग के लिए बनी हैं ऐसे मर्दों की नजर में. अतः प्रेम तो हर किसी से किया जा सकता है पर सच्चा प्रेम अब कहीं देखने को नहीं मिलता केवल लोग शारीरक भूख मिटाने के लिए ही आज प्रेम करने का नाटक करने लगे हैं और महिलाएं भी उसमे अपवाद नहीं अतः आँख मूंदकर किसी महिला का किसी पुरुष पर विश्वास करना उसकी भूल कही जाएगी .और प्रेम में विश्वासघात कभी नहीं होता, अगर वह सच्चा प्रेम हो तो ?
तीसरी बात – स्त्रियों के साथ होनेवाले ज्यादतियों के लिए अक्सर पुरुषों को ही अपराधी समझा जाना एकदम गलत है किसी घटना के होने या न होने में दोनों बराबर रूप से जिम्मेवार कहे जायेंगे क्यूंकि कोई यूँ ही किसी पर ज्यादतियां नहीं करता इसके दुसरे पहलु को देखना जरुरी है अतः आज जैसी घटनाये घट रहीं हैं उसमे हमारी इस धरना में बदलाव आना ही चाहिए और इसका फैसला अदालत ही को करना चाहिए किसी अपराध को अंजाम देने के पीछे दुसरे पक्छ की बात को सुनना चाहिए यूँ एकतरफा फैसला की पुरुष दोषी है यह गलत होगा और मैं फिर कहूँगा महिलाओं पर होनेवाले अत्याचारों में महिलाओं का आज ज्यादा हाथ है यहाँ तक की महिलाएं हीं महिलाओं की हत्या भी आज करवा रहीं हैं उसका ताज़ा सबूत अभी गीतिका के केश में उजागर हुवा है प्रतिस्पर्धा की लहर में कौन किससे कैसे आगे निकलेगा इसके लिए सारे हथकंडे आजमाए जा रहें हैं चाहे किसी की हत्या ही क्यूँ करनी पड़े? किसी को रास्ते से हटाकर खुद को आगे करने की चाहत आज ज्यादा देखने को मिल रही है अतः महिलाओं को अपने ऊपर होने वाले ज्यादतियों के लिए उन्हें अपने आपको और सशक्त और सुरक्छित बनाने के लिए कुछ मजबूत कदम उठाये जाने की जरुरत है जायदा से ज्यादा महिलाओं को कानून की पढाई पढनी चाहिए ताकि आज उनपर जो अपराध या अत्याचार हो रहें हैं उन मुजरिमों को अदालत में घसीटकर सजा दिलवा पायें मेरी राय में आज सबसे बड़ा महिलाओं के लिए कैरियर वकालत की पढाई में है इस पढाई के बल पर वे अपनी रक्छा के साथ साथ औरों को भी मदद पहुंचा पाएंगी वैसे तो आज महिलाएं अपने देश में शीर्ष पर देखी जा सकती हैं यहाँ तक के प्रतियोगी परीक्छाओं में भी वे पहले नंबर पर आ रहीं है अतः इन सबके साथ उनको अपने चरित्र निर्माण पर भी जयादा ध्यान देने की जरुरत है जो चरित्रवान होगा वह कभी अपने लिए गलत फैसले नहीं लेगा .
चौथी बात – जो सबसे अहम् है मैं यह कभी मानने को तैयार नहीं की प्रेम और विश्वास का नतीजा मौत है , इसमें जानने वाली बात यह है की प्रेम का आधार क्या है? और विश्वास किसपर और किस कारन से किया गया है अगर वह प्रेम और विश्वास स्वार्थ पर आधारित है तो वह न प्रेम है न विश्वास और इसके लिए मैं किसी को दोषी नहीं मानता और न इसके लिए किसी को कोई दोष दिया जा सकता है जब हमरी नीव हीं गलत होगी तो ईमारत कहाँ से मजबूत होगी अतः प्रेम को दोष देना गलत होगा सच्चा प्रेम भगवान की दी हुयी एक नेमत है उसपर कसी को संदेह नहीं करना चाहिए और सही मानो में आज प्रेम इन्सान से न कर ईश्वर से करना ज्यादा उचित है इसके लिए कोई मुझे मनुवादी कहे तो कहता रहे क्यूंकि सच्चा प्रेम दुनिया से ख़तम हो चूका है , अब तो माँ बेटे के प्रेम पर भी लोगों को संदेह होता है फिर अब प्रेम कोई किससे करेगा और किसका विश्वास करेगा यह अच्छी बात तो नहीं पर यह सच्चाई है और कडवी है

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