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आजाद भारत कहाँ हुवा है ? इस देश में दो देश एक साथ बसते हैं एक भारत और दूसरा इंडिया . हाँ इंडिया जरुर आजाद हुवा है उनकी चहुमुखी तर्रकी भी हुयी है लेकिन वैसे लोग इस देश की कूल आबादी के दशमलव एक प्रतिशत से भी कम हैं आंकड़ों के हिसाब से, जब इस देश के योजना आयोग के अध्यक्छ महोदय यह बयां देते हैं की जिस आदमी की एक दिन की आमदनी अगर २६ रुपये है तो वह गरीब नहीं है और जिसकी ३२ रुपये है वह शहर में रहता है तो वह भी गरीब नहीं अब इस बात से हिन् अंदाजा लगाया जा सकता है की आजादी दिलाने वाले अमर शहीदों की क़ुरबानी किन लोगों के काम आई है . सुनने में आया है की राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी कहा करते थे की ” जब तक इस देश के सबसे गरीब के घर खाने के लिए दो वक्त का अनाज और न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने के लिए उतना पैसा नहीं उपलब्ध होता तब तक ये देश आजाद कहाँ से कहलायेगा ” और देश की सारी योजनायें उनके लिए तो बेकार ही साबीत होगा और ऐसा नहीं अपने देश में अनाज का भंडार नहीं की सबको भोजन मिले बल्कि हमारे देश में तो अनाज सदाय जाता है खुले में रखकर और उसे भी गरीबों में बाटने के लिए यह सरकार मना करती है और इसके लिए तो देश के सुप्रीम कोर्ट तक ने आदेश दिए फिर भी सरकार इस साल भी लाखों टन अनाज सड़ती रह गयी और आज तक ऐसे जघन्य दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुयी और ऐसा इसलिए हुवा की सरकार को शराब से ज्यादा कर मिलता है तो वह शराब बनानेवालों को देगी ऐसे अनाज को यानि इस देश का गरीब शराब पीकर जिन्दा रहे यह सरकार चाहती है अतः जो आजादी का सपना उन आजादी के दिवानो ने देखा था हमारे विद्वान् नेताओं की नजर में यही उसका प्रतिफल है महात्मा गाँधी ने तब के कांग्रेस पार्टी को भंग करने की सलाह दी थी पर नेहरु जी बहुत महत्वाकान्छी थे उनको सत्ता का सुख भोगना था और उनका यही लालच इस देश के टुकड़े भी करवा गया जिसका दंश इस देश की जनता आज भी आतंकवाद के रूप में झेल रही है वर्ना पाकिस्तान जैसा पडोसी मुल्क जिसकी कुल आबादी हमारे देश के एक राज्य के बराबर नहीं वह भी हमें धमकीया देता है सीमा पर सुरंग बनाकर उसके रस्ते देश में दाखील होना चाहता है और हमारी सुरक्छा सेनाएं देखती रह जाती हैं लगता है उनमे भी अब देश की रक्छा का जज्बा नहीं रहा क्यूंकि वे भी अपने देश की कुब्याव्स्था के शिकार हैं उनकी क़ुरबानी को भी यह देश नजर अंदाज करता है तथा कारगील युद्ध को जिसमे अपनी सेना के ५२५ जवान शहीद हुए उस लडाई को किसी पार्टी विशेस की लडाई कहता है यानि वह कारगिल युद्ध बीजेपी की लडाई थी उसमे जो सैनिक मारे गए वे देश के सैनिक न होकर बीजेपी के थे यह तो आज हमारे देश की सरकार और कांग्रेस कह रही है जो सर्कार वोट बैंक बनाने के लिए बंगला देशियों की घुसपैठ की इजाजत देती है वैसे देश में लोग अपने को आजाद क्यूँ कर महसूस कर सकते हैं? और दुर्भाग्य से असम में आज कांग्रेस की हिन् सरकार है तभी वहा हुयी हिंसा को यह सरकार मामूली घटना समझकर भूल जाने को कहती है आपने ठीक सवाल उठाया है अपना देश ६६ वाँ स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने जा रहा है और हर साल की तरह अपने देश के वर्तमान पीएम श्री मनमोहन सिंह भासन देंगे पर उनको यह सब बातें या तो मालूम नहीं या उनकी जुबान किसी मैडम ने बंद कर रखी है वे तो वही बोलेंगे जो उनको लिख कर मिलेगा शायद उनको हिंदी ठीक से आती भी नहीं है जो अपने देश की मातृभासा है इससे बड़ा दुर्भाग्य हमरे लिए क्या हो सकता आज शीर्ष पर जो लोग बैठे हैं और जिनके हाथों में इस देश की बागडोर है उनको इस देश की मातृभासा हिंदी आती हीं नहीं है फिर उनको इस देश की जनता से क्या सरोकार ? जो सर्कार भूख , भय ,भ्रष्टाचार , गरीबों को न्याय और जान मरती महंगाई से बेपरवाह सत्ता पर काबिज है और उसके खिलाफ होने वाले शांतिपूर्ण आन्दोलन को कुचलकर उसको ठेंगा दिखाकर भी सत्ता पर काबिज है क्या इसको लोकतंत्र कहेंगे ? तो जवाब साफ़ है जहाँ लोकतंत्र ही जिन्दा नहीं उस देश के लोग आजाद कैसे ? आये दिन महिलाओं पर होता अत्यचार इतना नहीं नारी सुधर और बल सुधर गृहों में ब्याप्त ब्याभिचार उनपर होते यौन शोसन सब कुछ क्या बयां करता है क्या यहाँ कानून का राज है ? पहले लालू सर्कार को जंगल राज कहा जाता था अब भारत सर्कार जंगल राज चला रही है और इस देश की जनता देख रही है सह रही है इस देश की जनता को इन नेताओं ने धन्यवाद देना चाहिए उनका दमन वे फिर भी सह रहें हैं वर्ना अब तक तो क्रांति का बिगुल बजना हिन् चाहिए था इस देश को अब क्रांति हिन् बचा सकती है देशवासियों तैयार हो जाओं जालिमों को उखड फेंको जैहिंद
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