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एकतरफा प्रस्ताव – जागरण जंक्सन फोरम
दिल्ली की अदालत द्वारा प्रस्तावित यौन संबंधो के मामले में उम्र की सीमा निर्धारण महज अपने देश में ब्याप्त सामाजिक बुरायिओं को बढ़ावा देने के आलावा और कुछ नहीं .आज किशोर एवं किशोरियां दिशाहीन हो चुकी हैं अगर कुछ प्रस्ताव या कानून बनाना भी है तो न्यायालयों को कुछ ऐसे उपाय ,प्रस्ताव या कानून बनाने की जरुरत है की जो नित नए बलात्कार की घटनाएँ देश में हो रहें हैं उनपर कैसे रोक लगायी जाये .यौन सम्बन्ध अगर दोनों की रजामंदी से होता है खासकर किशोर वर्ग के लोगों के बीच तो इसकी समय सीमा तय करने की या उम्र बताने की जरुरत हीं क्यूँ हो ? बिना उम्र के पूरा हुए ऐसे संबंधों के बारे में किशोर किशोरी क्यूँ सोचने लगे अगर वे एक अच्छे सामाजिक परिवेश में रह रहे हो जहाँ लोक लाज के बारे में उनको घरेलु एवं सामाजिक सिक्छा मिल रही हो कोई प्रेरित ही नहीं होता इस सब के लिए आज जबरन शारीरिक सम्बन्ध वाले केश ज्यादा सामने आते हैं और बेमेल सेक्स की घटनाएँ ज्यादा घटती हैं इसके कई कारन हैं
उनमे से मुख्य कारन है लड़का और लड़की की संख्या अनुपात में फर्क जो की सारी समस्यायों की जड़ है दुसरे लड़कियों की शादी पर ढेर सारा दहेज़ देने का बोझ , तीसरा बिबाह उपरांत बढ़ते हुए तलाक जो अक्सर दहेज़ की लेन देन में कमी के चलते होते रह्रते हैं अक्सर शारीरक सम्बन्ध जब दो किशोर वय के लड़का एवं लड़की एक साथ पढने के चलते ज्यादा समय एक साथ गुजरते हैं तो उनका आपस में आकर्षण होना प्राकृतिक और लाजमी है अब ऐसे में वे आपस में शारीरिक सम्बन्ध बना लेते हैं तो केवल लड़के को ही दोषी ठहराया जाना कहाँ तक जायज है , नहीं ये सरासर लड़के के साथ नाइंसाफी कहलाएगी क्यूंकि इसमें दोनों बराबर के दोषी हैं अगर उनकीउम्र इसको इजाजत नहीं देती तो इसमें कोई कानून क्या करेगा और ऐसा कोई कानून बनाने से युवतियों को कोई सामाजिक सुरक्छा देने में कोई मदद उनकोमिलेगी ऐसा नहीं लगत्ता , कानून अपने देश में पहले भी बहुत हैं जो महिलाओं को सुरक्छा देनेके लिए प्रयाप्त हैं सक्छाम हैं आज जरुरत कानून का कडाई से पालन करने की है और इन सब में पुलिस की भूमिका बहुत अहम् है और जागरूकता भी अहम् है कितने ही मामलों में लोग शिकायत भी दर्ज नहीं करते बदनामी के डर से जिससे अपराधियों का मनोबल बढ़ता ही जा रहा है और कानून बनाने में सबसे ज्यादा महिलाओं का ध्यान रखना निहायत जरुरी है क्यूंकि आज महिलाएं ही ज्यादा सताई जा रही है प्रताड़ित हो रही हैं क्यूंकि अभी भी अपना देश एक पुरुष प्रधान देश के रूप में ही जाना जा रहा है अतः मेरे विचार से ऐसा कोई कानून उम्र के हिसाब से बनाना अलोकतांत्रिक और पिछड़ेपन की निशानी ही कहा जायेगा बस आज जरुँरत है तो अपने सामाजिक परिवेश को सुधरने की और लोगों को जागृत कर महिलाओं की तरफ सहानुभूति की दृष्टि रखने की यौन संबंधों की आयु सीमा में वृद्धि या कमी की नहीं आज लड़कियां एकल रहना ज्यादा पसंद करने लगी हैं इन्ही सबा सामाजिक बुरायिओं के चलते और अपन देश और अपना कानून महिलाओं को सुरक्छा देने मेंरहा है इसके लिए कुछ करने की जरुरत है हाई कोर्ट को इसके लिए कोई कानून बनाना ही तो जरुर बनाये
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