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बंद से जनता एवं देश को क्या मिला ?

aarthik asmanta ke khilaf ek aawaj
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बंद किसके लिए -जागरण जंक्सन फोरम
कल भारत बंद था ,करोडो का नुकसान देश के ब्यापार जगत को हुवा जिसमे आम लोग भी काम करते हैं और अपने दो वक्त की रोटी कमाते हैं और तो और आगजनी द्वारा बसों को जलाया गया जो एक राष्ट्रिय छति है और इसका लाभ किसको हुवा ? इस बंद का नेत्रित्व किसके हाथ था क्या बिपक्छ यानि बीजेपी या कमुनिस्ट पार्टी इस बंद को करवा रही थी, सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ या सरकार के हर मोर्चे पर विफलता के खिलाफ यह बंद था ? इस बंद में ऐसा कुछ नहीं देखने को मिला आज के ये नेता चाहे वे सत्ता पक्छ के हो या बिपक्छी पार्टी के हों ,इन नेताओं को वातानुकूलित कमरों में बैठकर गप्पे हाकने के सिवा और कुछ भी करने का माद्दा नहीं रहा इनको आराम करने की आदत हो गयी और जनता इनसे अपने कल्याण की उम्मीद करती है यह जनता के दिवा स्वप्न के अलावा कुछ भी नहीं और अब तो शांतिपूर्ण सत्याग्रह या आन्दोलन धरना प्रदर्शन को भी यह सरकार लाठी के बल पर रोक दे रही है और जो लोग इस सरकार की करतूतों के खिलाफ आवाज उठाते है उनके पीछे ही सीबीआई लगा दे रही है और कोशिस कर रही है की उनको किसी कानून की धारा में अन्दर कर दे अपने आप आन्दोलनकारियों का हौसला पस्त हो जायेगा अब देखना है सम्जसेवी अन्ना हजारे अपने बीमार सवास्थ्य के साथ क्या कुछ कर पाएंगे जुलाई महीने में.
जब तक इस देश में एक खुनी क्रांति नहीं होगी ये छोटे मोटे प्रदर्शन धरने से कुछ होनेवाला नहीं क्या इस देश की त्रस्त जनता ऐसी क्रांति के लिए तैयार है? . ऐसा दीखता नहीं है, वर्ना लाखों टन गेहूं सड रहा है और खाने को नहीं दिया जा रहा सरकार खाद्य सुरक्छा कानून लेन की बात कर रही है आज कितने ही महत्वपूर्ण जन कल्याण के मसले धरे के धरे पड़े हैं और यह सरकार अपना रिपोर्ट कार्ड जनता को दिखा रही है अपने ६०वे वर्षगांठ पर देश के लोगों की किसी भी समस्या के समाधान के लिए क्या करने जा रही है सरकार ऐसा सरकार, मंत्रियों नेताओं ने नहीं कहा केवल संसद की गरिमा कैसे बरकरार राखी जाये इसके लिए विचार करते रहे उसमे जनता का तो कोई मतलब संसद नेताओं एवं मंत्रियों की है इसमें जनता का तो कोई हिस्सा है ही नहीं जनता को इन सांसदों को चुनना था सो तो वह ५ साल के लिए चुन चुकी है अब ५ साल पूरे होने का इन्तेजार करे चाहे महंगाई कितनी बढे उसको झेले खाए .पिए या मरे सरकार को क्या ? मुझे नहीं लगता भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहले ऐसा कोई समय आया था या आगे भी ऐसा आएगा यह कांग्रेस ही है जिसको महात्मा गाँधी आजादी से पहले ही दफ़न करने की बात किये थे . काश ! वे ऐसा कर पाए होते तो अपने देश को ऐसा दुर्दीन देखने को न मिलता . बंद से किसी को लाभ नहीं अतः विरोध प्रदर्ष न का यह हथियार आजमाना बेमानी लग रहा है आज के राजनितिक परिवेश में .

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